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नवम शतक : उद्देशक-३२
४६९ ११) यावत् एक शर्करापृथ्वी में उत्पन्न होता है और एक अधःसप्तमपृथ्वी में। (अर्थात् —एक शर्कराप्रभा में
और एक पंकप्रभा में. एक शर्कराप्रभा में और एक धूमप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और एक तमःप्रभा में, अथवा एक शर्कराप्रभा में और एक तमस्तमःप्रभा में उत्पन्न होता है। इस प्रकार शर्कराप्रभा के साथ पांच विकल्प हुए।)
(१२) अथवा एक बालुकाप्रभा में और एक पंकप्रभा में उत्पन्न होता है, (१३-१४-१५) अथवा इसी प्रकार यावत् एक बालुकाप्रभा में और एक अध:सप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है। (अर्थात् अथवा एक बालुकाप्रभा में और एक धूमप्रभा में, या एक बालुकाप्रभा में और एक तमःप्रभा में, या एक बालुकाप्रभा में और एक तमस्तमःप्रभा में उत्पन्न होता है। इस प्रकार बालुकाप्रभा के साथ चार विकल्प हुए)।
(१६-१७-१८-१९-२०-२१) इसी प्रकार (पूर्व-पूर्व की) एक-एक पृथ्वी छोड़ देनी चाहिए, यावत् एक तमःप्रभा में और एक तमस्तमःप्रभा में उत्पन्न होता है। (अर्थात् —एक पंकप्रभा में और एक धूमप्रभा में, एक पंकप्रभा में और एक तमःप्रभा में, या एक पंकप्रभा में और एक तमस्तम:प्रभा में, यों तीन विकल्प पंकप्रभा के साथ तथा एक धूमप्रभा में और एक तमःप्रभा में या एक धूमप्रभा में और एक तमस्तम:प्रभा में, यों दो विकल्प.धूमप्रभा के साथ तथा एक तमःप्रभा में और एक तमस्तमःप्रभा में उत्पन्न होता है, यों एक विकल्प तमःप्रभा के साथ होता है)।
विवेचन-दो नैरयिकों के प्रवेशनक-भंग-दो नैरयिकों के कुल प्रवेशन-भंग २८ होते हैं। जिनमें से एक-एक नरक में दोनों नैरयिकों के एक साथ उत्पन्न होने की अपेक्षा से७ भंग होते हैं। दो नरकों में एक-एक नैरयिक की एक साथ उत्पत्ति होने की अपेक्षा से द्विकसंयोगी कुल २१ भंग होते हैं, जिनमें रत्नप्रभा के साथ ६, शर्कराप्रभा के साथ ५, बालुकाप्रभा के साथ ४, पंकप्रभा के साथ ३, धूमप्रभा के साथ २ और तमःप्रभा के साथ १, इस प्रकार कुल मिलाकर २१ भंग होते हैं। दो नैरयिकों के असंयोगी ७ और विकसंयोगी २१, ये दोनों मिलाकर कुल २८ भंग (विकल्प) होते हैं।' तीन नैरयिकों के प्रवेशनक-भंग
१८. तिण्णि भंते ! नेरइया नेरइयपवेसणए णं पविसमाणा किं रयणप्पभाए होज्जा जाव अहेसत्तमाए होज्जा?
गंगेया ! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा।७।
अहवा एगे रयणप्पभाए, दो सक्करप्पभाए होज्जा १। जाव अहवा एगे रयणप्पभाए, दो अहेसत्तमाए होज्जा, २-३-४-५-६। अहवा दो रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए होज्जा १। जाव अहवा दो रयणप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा, २-३-४-५-६ = १२। अहवा एगे सक्करप्पभाए, दो वालुयप्पभाए होज्जा। जाव अहवा एगे सक्करप्पभाए, दो अहेसत्तमाए होज्जा, २-३-४-५ १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४४२ (ख) भगवती भा. ४ (पं. घेवरचंदजी), पृ. १६२१