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नवम शतक : उद्देशक-३२
गंगेया ! चविहे पवेसणए पण्णत्ते, तं जहा–नेरइयपवेसणए तिरिक्खजोणियपवेसणए मणुस्सपवेसणए देवपवेसणए।
[१४ प्र.] भगवन्! प्रवेशनक कितने प्रकार का कहा गया है ? • [१४ उ.] गांगेय! प्रवेशनक चार प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार—(१) नैरयिक-प्रवेशनक, (२) तिर्यग्योनिक-प्रवेशनक, (३) मनुष्य-प्रवेशनक और (४) देव-प्रवेशनक।
विवेचन–प्रवेशनक–एक गति से दूसरी गति में प्रवेश करना-जाना, प्रवेशनक है। अर्थात्-एक गति से मर कर दूसरी गति में उत्पन्न होना प्रवेशनक कहलाता है। गतियाँ चार होने से प्रवेशनक भी चार प्रकार का ही है। नैरयिक-प्रवेशनक निरूपण
१५. नेरइयपवेसणए णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ?
गंगेया ! सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा—रयणप्पभापुढविनेरइयपवेसणए जाव अहेसत्तमापुढविनेरइयपवेसणए।
[१५ प्र.] भगवन् ! नैरयिक-प्रवेशनक कितने प्रकार का कहा गया है ? ।
[१५ उ.] गांगेय! (नैरयिक-प्रवेशनक) सात प्रकार का कहा गया है, जैसे कि रत्नप्रभा पृथ्वीनैरयिकप्रवेशनक यावत् अधःसप्तमपृथ्वीरैरयिक-प्रवेशनक।
विवेचन नैरयिक-प्रवेशनक सात ही क्यों ?-नरक सात हैं और नैरयिक जीव रत्नप्रभा आदि नरकों में से किसी भी एक नरक में उत्पन्न होता है, अतः उसके सात ही प्रवेशनक हो सकते हैं। यथारत्नप्रभा-प्रवेशनक, शर्कराप्रभा-प्रवेशनक आदि। एक नैरयिक के प्रवेशनक-भंग
१६. एगे भंते ! नेरइए नेरइयपवेसणए णं पविसमाणे किं रयणप्पभाए होज्जा, सक्करप्पभाए होज्जा, जाव अहेसत्तमाए होज्जा ?
गंगेया ! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा। __[१६ प्र.] भंते! क्या एक नैरयिक जीव नैरयिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करता हुआ रत्नप्रभापृथ्वी में होता है, अथवा यावत् अधःसप्तमपृथ्वी में होता है ?
[१६ उ.] गांगेय! वह नैरयिक रत्नप्रभापृथ्वी में होता है, या यावत् अधःसप्तमपृथ्वी में होता है। १. गत्यन्तरादुवृत्तस्य विजातीयगतौ जीवस्य प्रवेशनं उत्पाद इत्यर्थः। भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४४२ २. वियाहपण्णत्तिसुत्तं भा. १ (मूलपाठ-टिप्पण), पृ. ४२२