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बीओ उद्देसओ : जोइस
द्वितीय उद्देशक : ज्योतिष जम्बूद्वीप आदि द्वीप-समुद्रों में चन्द्र आदि की संख्या
१. रायगिहे जाव एवं वयासी[२] राजगृह नगर में यावत् गौतम स्वामी ने इस प्रकार पूछा
२. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइया चंदा पभासिंसु वा पभाति वा पभासिस्संति वा ? एवं जहा' जीवाभिगमे जाव—'नव य सया पण्णासा तारागणकोडिकोडीणं'॥ सोभं सोभिंसु सोभिंति सोभिस्संति।
[२ प्र.] भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में कितने चन्द्रों ने प्रकाश किया, प्रकाश करते हैं और प्रकाश करेंगे?
[२ उ.] गौतम! जिस प्रकार जीवाभिगमसूत्र में कहा है, उसी प्रकार यहाँ भी एक लाख तेतीस हजार नौ सौ पचास कोड़ाकोड़ी तारों के समूह शोभित हुए, शोभित होते हैं और शोभित होंगे।' तक जानना चाहिए।
३. लवणे णं भंते ! समुद्दे केवतिया चंदा पभासिंसु वा पभासिंति वा पभासिस्संति वा? . एवं जहा जीवाभिगमे जाव ताराओ। [३ प्र.] भगवन् ! लवणसमुद्र में कितने चन्द्रों ने प्रकाश किया, प्रकाश करते हैं और प्रकाश करेंगे। [३ उ.] गौतम! जिस प्रकार जीवाभिगमसूत्र में कहा है, उसी प्रकार तारों के वर्णन तक जानना चाहिए।
४. धायइसंडे कालोदे पुक्खरवरे अब्भिंतरपुक्खरद्धेमणुस्सखेत्ते, एएसुसव्वेसु जहा जीवाभिगमे जाव—'एग ससीपरिवारो तारागणकोडिकोडीणं।'
[४] धातकीखण्ड, कालोदधि, पुष्करवरद्वीप, आभ्यन्तर पुष्करार्द्ध और मनुष्यक्षेत्र, इन सब में जीवाभिगमसूत्र के अनुसार--"एक चन्द्र का परिवार कोडाकोडी तारागण (सहित) होता है" तक जानना चाहिए।
५. पुक्खरद्धे णं भंते ! समुद्दे केवइया चंदा पभासिंसु वा पभासंति वा पभासिस्संति वा ?
१. जीवाभिगम-मूलपाठ—जाव–एवं च सयसहस्सं तेत्तीसं खलु भवे सहस्साइं—जीवाभिगम सू. १५३, पत्र ३०३ २. देखिये-जीवाभिगमसूत्र पत्र ३०३, सू. १५५ में
पंचम प्रश्न के उत्तर में—संखेन्जा चंदा पभासिंसु वा पभासंति वा पभासिस्संति वा इत्यादि। ३. देखिये-जीवाभिगम में—स. १७५-१७७ पत्र ३२७-३५ ।