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पढमो उद्देसओ : जंबुद्दीवे
प्रथम उद्देशक : जम्बूद्वीप मिथिला में भगवान् का पदार्पण : अतिदेशपूर्वक जम्बूद्वीपनिरूपण
२.तेणं कालेणं तेणं समएणं मिहिला नाम नगरी होत्था।वण्णओ।माणिभद्दे चेइए।वण्णओ। सामी समोसढे। परिसा निग्गया। धम्मो कहिओ। जाव भगवं गोयमे पज्जुवासमाणे एवं वयासी
__[२. उपोद्घात] उस काल और उस समय में मिथिला नाम की नगरी थी। (उसका) वर्णन (यहाँ समझ लेना चाहिए)। वहाँ माणिभद्र नाम का चैत्य था। उसका भी वर्णन औपपातिकसूत्र के अनुसार समझ लेना चाहिए। स्वामी (श्रमण भगवान् महावीर) का समवसरण हुआ। (उनके दर्शन-वन्दन आदि करने के लिए) परिषद् निकली। (भगवान् ने) धर्म कहा-धर्मोपदेश दिया, यावत् भगवान् गौतम ने पर्युपासना करते हुए (भगवान् महावीर ने) इस प्रकार पूछा
३. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे ? किंसंठिए णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे ?
एवं जंबुद्दीवपण्णत्ती' भाणियव्वा जाव एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे चोइस सलिलासय सहस्सा छप्पन्नं च सहस्सा भवंतीति मक्खाया। सेवं भंते ! सेवं भंते त्ति.।
॥नवम सए : पढमो उद्देसओ समत्तो॥ [३ प्र.] भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप कहाँ है ? (उसका) संस्थान (आकार) किस प्रकार का है ?
[३ उ.] गौतम! इस विषय में जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में कहे अनुसार—जम्बूद्वीप नामक द्वीप में पूर्व-पश्चिम समुद्र गामी कुल मिलाकर चौदह लाख छप्पन हजार नदियाँ हैं, ऐसा कहा गया है तक कहना चाहिए।
विवेचन–सपुव्वावरेणं : व्याख्या—पूर्वसमुद्र और अपर (पश्चिम) समुद्र की ओर जा कर उनमें गिरने वाली नदियाँ।
चौदह लाख छप्पन हजार नदियाँ-जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति के अनुसार इस प्रकार हैं१. पाठान्तर—'जहा जंबुद्दीवपन्नत्तीए तहा णेयव्वं जोइस विहूणं।
जाव-खंडा जोयण वासा पव्वय कूडा य तित्थ सेढीओ। विजय इह सलिलाओ य पिंडए होति संगहणी॥'
-भगवती. अ. वृत्ति में इसकी व्याख्या भी मिलती है।—सं. २. भगवती. वृत्ति, पत्र ४२५