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________________ ४१० व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ११. उक्कोसियं णं भंते ! दंसणाराहणं आराहेत्ता कतिहिं भवग्गहणे हिं० ? एवं चेव । [११ प्र.] भगवन् ! दर्शन की उत्कृष्ट आराधना करके जीव कितने भव ग्रहण करके सिद्ध होता है, यावत् सभी दुःखों का अन्त करता है ? [११ उ.] गौतम! (जिस प्रकार उत्कृष्ट ज्ञानाराधना के फल के विषय में कहा) उसी प्रकार उत्कृष्ट दर्शनाराधना के ( फल के) विषय में समझना चाहिए। १२. उक्कोसियं णं भंते ! चरित्ताराहणं आराहेत्ता० ? एवं चेव । नवरं अत्थेगइए कप्पातीएसु उववज्जति । [१२ प्र.] भगवन् ! चारित्र की उत्कृष्ट आराधना करके जीव कितने भव ग्रहण करके सिद्ध होता है, यावत् सभी दुःखों का अन्त करता है ? [१२ उ.] गौतम ! उत्कृष्ट ज्ञानाराधना के ( फल के) विषय में जिस प्रकार कहा है, उसी प्रकार उत्कृष्ट चारित्राराधना के (फल के) विषय में कहना चाहिए। विशेष यह है कि कोई जीव (इसके फलस्वरूप ) कल्पातीत देवलोकों में उत्पन्न होता है। १३. मज्झिमियं णं भंते ! णाणाराहणं आराहेत्ता कतिहिं भवग्गहणेहिं सिज्झति जाव अंतं करेति ? गोयमा ! अत्थेगइए दोच्चेणं भवग्गहणेणं सिज्झइ जाव अंतं करेति, तच्चं पुण भवग्गणं नाइक्कमइ । [१३ प्र.] भगवन् ! ज्ञान की मध्यम-आराधना करके जीव कितने भव ग्रहण करके सिद्ध होता है, यावत् सभी दुःखों का अन्त कर देता है ? [१३ उ.] गौतम ! कोई जीव दो भव ग्रहण करके सिद्ध होता है, यावत् सभी दुःखों का अन्त करता है, किन्तु तीसरे भव का अतिक्रमण नहीं करता । १४. मज्झमियं णं भंते ! दंसणाराहणं आराहेत्ता० ? एवं चेव । • [ १४ प्र.] भगवन् ! दर्शन की मध्यम आराधना करके जीव कितने भव ग्रहण करके सिद्ध होता है, यावत् सब दुःखों का अन्त करता है ? [१४ उ.] गौतम ! जिस प्रकार ज्ञान की मध्यम आराधना के ( फल के) विषय में कहा, उसी प्रकार दर्शन की मध्यम आराधना के ( फल के) विषय में कहना चाहिए।
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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