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अष्टम शतक : उद्देशक-१०
४११ १५. एवं मज्झिमियं चरित्ताराहणं पि। [१५] पूर्वोक्त प्रकार से चारित्र की मध्यम आराधना के (फल के) विषय में कहना चाहिए?
१६. जहन्नियं णं भंते ! नाणाराहणं आराहेत्ता कतिहिं भवग्गहणेहिं सिज्झति जाव अंतं करेति?
गोयमा ! अत्थेगइए तच्चे णं भवग्गहणेणं सिज्झइ जाव अंतं करेइ, सत्त-ऽट्ठभवग्गहणाइं पुण नाइक्कमइ।
[१६ प्र.] भगवन् ! ज्ञान की जघन्य आराधना करके जीव कितने भव ग्रहण करके सिद्ध होता है, यावत् सब दुःखों का अन्त करता है ?
[१६ उ.] गौतम! कोई जीव तीसरा भव ग्रहण करके सिद्ध होता है, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है, परन्तु सात-आठ भव से आगे अतिक्रमण नहीं करता है।
१७. एवं दंसणाराहणं पि। [१७] इसी प्रकार जघन्य दर्शनाराधना के (फल के) विषय में समझना चाहिए। १८. एवं चरित्ताराहणं पि। [१८] इसी प्रकार जघन्य चारित्राराधना के (फल के) विषय में भी कहना चाहिए।
विवेचन–ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना, इनका परस्पर सम्बन्ध एवं इनकी उत्कृष्टमध्यम-जघन्याराधना का फल-प्रस्तुत १६ सूत्रों (सू. ३ से १८ तक) में रत्नत्रय की आराधना और उनके पारस्परिक सम्बन्ध तथा उनके जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट फल के विषय में निरूपण किया गया है।
आराधना : परिभाषा प्रकार और स्वरूप ज्ञानादि की निरतिचार रूप से अनुपालना करना आराधना है। आराधना के तीन प्रकार हैं—ज्ञानाराधना, दर्शनाराधना और चारित्राराधना। पांच प्रकार के ज्ञान या ज्ञानाधार श्रुत (शास्त्रादि) की काल, विनय, बहुमान आदि आठ ज्ञानाचार-सहित निर्दोष रीति से पालना करना ज्ञानाराधना है। शंका, कांक्षा आदि अतिचारों को न लगाते हुए निःशंकित, निष्कांक्षित आदि आठ दर्शनाचारों का शुद्धातापूर्वक पालन करते हुए दर्शन अर्थात् सम्यक्त्व की आराधना करना दर्शनाराधना है। सामायिक आदि चारित्रों अथवा समिति-गुप्ति, व्रत-महाव्रतादि रूप चारित्र का निरतिचार विशुद्ध पालन करना चारित्राराधना है। ज्ञानकृत्य एवं ज्ञानानुष्ठानों में उत्कृष्ट प्रयत्न करना उत्कृष्ट ज्ञानाराधना है। इसमें चौदह पूर्व का ज्ञान आ जाता है। मध्यम प्रयत्न करना मध्यम ज्ञानाराधना है, इसमें ग्यारह अंगों का ज्ञान आ जाता है और जघन्य (अल्पमत) प्रयत्न करना जघन्य ज्ञानाराधना है। इसमें अष्टप्रवचनमाता का ज्ञान आ जाता है। इसी प्रकार दर्शन और चारित्र की आराधना में उत्कृष्ट, मध्यम एवं जघन्य प्रयत्न करना उनकी उत्कृष्ट, मध्यम एवं जघन्य आराधना है। उत्कृष्ट दर्शनाराधना में क्षायिकसम्यक्त्व, मध्यम दर्शनाराधना में उत्कृष्ट क्षायोपशमिक या