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________________ अष्टम शतक : उद्देशक-१० ४०९ (अजघन्य-अनुत्कृष्ट) होती है। जिस जीव के उत्कृष्ट दर्शनाराधना होती है, उसके उत्कृष्ट, जघन्य या मध्यम ज्ञानाराधना होती है। ८. जस्सणं भंते ! उक्कोसिया णाणाराहणा तस्स उक्कोसिया चरित्ताराहणा? जस्सुक्कोसिया चरित्ताराहणा तस्सुक्कोसिया णाणाराहणा ? जहा उक्कोसिया णाणाराहणा य दंसणाराहणा य भणिया तहा उक्कोसिया णाणाराहणा य चरित्ताराहणा य भाणियव्वा। [८ प्र.] भगवन् ! जिस जीव के उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है, क्या उसके उत्कृष्ट चारित्राराधना होती है और जिस जीव के उत्कृष्ट चारित्राराधना होती है, क्या उसके उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है ? [८ उ.] गौतम! जिस प्रकार उत्कृष्ट ज्ञानाराधना और दर्शनाराधना के विषय में कहा, उसी प्रकार उत्कृष्ट ज्ञानाराधना और उत्कृष्ट चारित्राराधना के विषय में भी कहना चाहिए। ९. जस्स णं भंते ! उक्कोसिया दंसणाराहणा तस्सुक्कोसिया चरित्ताराहणा? जस्सुक्कोसिया चरित्ताराहणा तस्सुक्कोसिया दंसणाराहणा? गोयमा ! जस्स उक्कोसिया दंसणाराहणा तस्स चरित्ताराहणा उक्कोसा वा जहन्ना वा अजहन्नमणुक्कोसा वा, जस्स पुण उक्कोसिया चरित्ताराहणा तस्स दंसणाराहणा नियमा उक्कोसा। [९ प्र.] भगवन् ! जिसके उत्कृष्ट दर्शनाराधना होती है, क्या उसके उत्कृष्ट चारित्राराधना होती है, और जिसके उत्कृष्ट चारित्राराधना होती है, उसके उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है ? [९ उ.] गौतम! जिसके उत्कृष्ट दर्शनाराधना होती है, उसके उत्कृष्ट, मध्यम या जघन्य चारित्राराधना होती है और जिसके उत्कृष्ट चारित्राराधना होती है, उसके नियमतः (अवश्यमेव) उत्कृष्ट दर्शनाराधना होती १०. उक्कोसियं णं भंते ! णाणाराहणं आराहेत्ता कतिहिं भवग्गहणेहिं सिज्झति जाव अंतं करेति? गोयमा ! अत्थेगाइए तेणेव भवग्गहणेणं सिझति जाव अंतं करेति। अत्थेगइए दोच्चेणं भवग्गहणेणं सिज्झति जाव अंतं करेति। अत्थेगइए कप्पोवएसु वा कप्पातीएसु वा उववज्जति। [१० प्र.] भगवन् ! ज्ञान की उत्कृष्ट आराधना करके जीव कितने भव ग्रहण करके सिद्ध होता है, यावत् सभी दुःखों का अन्त करता है ? [१० उ.] गौतम! कोई एक जीव उसी भव में सिद्ध हो जाता है, यावत् सभी दुःखों का अन्त कर देता है, कोई दो भव ग्रहण करके सिद्ध होता है, यावत् सभी दुःखों का अन्त करता है कितने ही जीव कल्पोपपन्न . देवलोकों में अथवा कल्पातीत देवलोकों में उत्पन्न होते हैं।
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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