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________________ ४०८ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ज्ञान- दर्शन - चारित्र की आराधना, इनका परस्पर सम्बन्ध एवं इनकी उत्कृष्ट-मध्यम जघन्याराधना का फल ३. कतिविहा णं भंते ! आराहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! तिविहा आराहणा पण्णत्ता, तं जहा— नाणाराहणा दंसणाराहणा चरित्ताराहणा । [३ प्र.] भगवन्! आराधना कितने प्रकार की कही गई है ? [३ उ.] गौतम! आराधना तीन प्रकार की कही गई है, वह इस प्रकार — ज्ञानाराधना, दर्शनाराधना और चारित्राराधना | ४. णाणाराहणा णं भंते ! कतिविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! तिविहा पण्णत्ता, तं जहा — उक्कोसिया मज्झमिया जहन्ना । [४ प्र.] भगवन्! ज्ञानाराधना कितने प्रकार की कही गई है ? [४ उ.] गौतम ! ज्ञानाराधना तीन प्रकार की कही गई है, वह इस प्रकार - (१) उत्कृष्ट, (२) मध्यम और (३) जघन्य । ५. दंसणाराहणा णं भंते ! ० ? एवं चेव तिविहा वि । [५ प्र.] भगवन्! दर्शनाराधना कितने प्रकार की कही गई है ? [५ उ.] गौतम! दर्शनाराधना भी इसी प्रकार तीन प्रकार की कही गई है। ६. एवं चरित्ताराहणा वि । [६] इसी प्रकार चारित्राराधना भी तीन प्रकार की कही गई है। ७. जस्स णं भंते ! उक्कोसिया णाणाराहणा तस्स उक्कोसिया दंसणाराहणआ ? जस्स उक्कोसिया दंसणाराहणा तस्स उक्कोसिया णाणाराहणा ? गोयमा ! जस्स उक्कोसिया णाणाराहणा तस्स दंसणाराहणा उक्कोसिया वा अजहन्नउक्कोसिया , जस्स पुण उक्कोसिया दंसणाराहणा तस्स नाणाराहणा उक्कोसा वा जहन्ना वा अजहन्नमणुक्कोसा वा, वा । [७ प्र] भगवन्! जिस जीव के उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है, क्या उसके उत्कृष्ट दर्शनाराधना होती है, और जिस जीव के उत्कृष्ट दर्शनाराधना होती है, क्या उसके उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है ? [७ उ.] गौतम! जिस जीव के उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है, उसके दर्शनाराधना उत्कृष्ट या मध्यम
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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