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________________ अष्टम शतक : उद्देशक-९ ३६५ १५. से किं तं लेसणाबंधे ? लेसमणाबंधे, जंणं कुड्डाणं कुट्टिमाणं खंभाणं पासायाणं कट्ठाणं चम्माणं घडाणं पडाणं कडाणं छुहा-चिक्कल्ल-सिलेस-लक्ख-महुसित्थमाइएहिं लेसणएहिं बंधे समुप्पज्जइ, जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेन्जं कालं। सेत्तं लेसणाबंधे। [१५ प्र.] भगवन् ! श्लेषणाबंध किसे कहते हैं ? [१५ उ.] गौतम! श्लेषणाबंध इस प्रकार का है—जो कुड्यों (भित्तियों) का, कुट्टिमों (आंगन के फर्श) का, स्तम्भों का, प्रासादों का, काष्ठों का, चर्मों (चमड़ों) का, घड़ों का, वस्त्रों का और चटाइयों (कटों) का चूना, कीचड़ श्लेष (गोंद आदि चिपकाने वाले द्रव्य, अथवा वज्रलेप), लाख, मोम आदि श्लेषण द्रव्यों से बंध सम्पन्न होता है, वह श्लेषणाबंध कहलाता है। यह बंध जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट संख्यातकाल तक रहता है। यह श्लेषणाबंध का कथन हुआ। १६.से किं तं उच्चयबंधे ? उच्चयबंधे, जंणं तणरासीण वा कट्ठरासीण वा पत्तरासीण वा तुसरासीण वा भुसरासीण वा गोमयरासीण वा अवगररासीण वा उच्चएणं बंधे समुप्पज्जइ, जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जं कालं। सेत्तं उच्चयबंधे। [१६ प्र.] भगवन्! उच्चयबंध किसे कहते हैं ? [१६ उ.] गौतम ! तृणराशि, काष्ठराशि, पत्रराशि, तुषराशि, भूसे का ढेर, गोबर (या उपलों) का ढेर अथवा कूड़े-कचरे का ढेर, इन का ऊँचे ढेर (पुंज-संजय) रूप से जो बंध सम्पन्न होता है, उसे उच्चयबंध कहते हैं । यह बंध जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टतः संख्यातकाल तक रहता है । इस प्रकार उच्चयबंध का कथन किया गया है। १७. से किं तं समुच्चयबंधे ? समुच्चयबंधे, जंणं अगड-तडाग-नदी-दह-वावी-पुक्खरणी-दीहियाणं गुंजालियाणं सराणं सरपंतिआणं सरसरपंतियाणं बिलपंतियाणं देवकुल-सभा-पवा-थूभ-खाइयाणं फरिहाणं पागाखालगचरिय-दार-गोपुर-तोरणाणं पासाय-घर-सरण-लेण-आवणाणं सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चरचउम्मुह-महापहमादीणं छुहा-चिक्खल्ल-सिलेसममुच्चएणं बंधे समुप्पज्जइ, जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जं कालं। सेत्तं समुच्चयबंधे। [१७ प्र.] भगवन् ! समुच्चयबंध किसे कहते हैं ? [१७ उ.] गौतम! कुआ, तालाब, नदी, द्रह, वापी (बावड़ी), पुष्करिणी (कमलों से युक्त वापी),
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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