________________
३६४
व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र प्रयोगबन्ध : प्रकार, भेद-प्रभेद तथा उनका स्वरूप
१२. से किं तं पयोगबंधे ?
पयोगबंधे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा—अणाईए वा अपज्जवसिए १, सादीए वा अपज्जवसिए २, सादीए वा सपज्जवसिए ३।तत्थ णं जे से अणाईए अपज्जवसिए से णं अट्ठण्हं जीवमझपएसाणं। तत्थ विणं तिण्हं तिण्हं अणाईए अपज्जवसिए, सेसाणं साईए।तत्थ णंजे से सादीए अपज्जवसिए से णं सिद्धाणं। तत्थ णं जे से साईए सपज्जवसिए से णं चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा—आलावणबंधे, अल्लियावणबंधे, सरीरबंधे, सरीरप्पयोगबंधे।
[१२ प्र.] भगवन् ! प्रयोगबंध किस प्रकार का है ?
[१२ उ.] गौतम! प्रयोगबंध तीन प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार—(१) अनादि - अपर्यवसित, (२) सादि-अपर्यवसित अथवा (३) सादि-सपर्यवसित । इनमें से जो अनादि-अपर्यवसित है, वह जीव के आठ मध्यप्रदेशों का होता है। उन आठ प्रदेशों में भी तीन-तीन प्रदेशों का जो बंध होता है, वह अनादिअपर्यवसित बंध है। शेष सभी प्रदेशों का सादि (-अपर्यवसित) बंध है। इन तीनों में से जो सादि-अपर्यवसित बंध है, वह सिद्धों का होता है तथा इनमें से जो सादि-सपर्यवसित बंध है, वह चार प्रकार का कहा गया है, यथा—(१) आलापनबंध, (२) अल्लिकापन (आलीन) बंध, (३) शरीरबंध और (४) शरीरप्रयोगबंध।
१३. से किं तं आलावणबंधे ?
आलावणबंधे,जंणं तणभाराण वा कट्ठभाराण वा पत्तभाराण वा पलालभाराण वा वेल्लभाराण वा वेत्तलया-वाग-वरत्त-रज्जु-वल्लि-दब्भमादिएहिं आलावणबंधे समुप्पज्जइ, जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जं कालं। सेत्तं आलावणबंधे।
[१३ प्र.] भगवन! आलापनबंध किसे कहते हैं ?
[१३ उ.] गौतम! तृण (घास) के भार, काष्ठ के भार,. पत्तों के भार, पलाल के भार और बेल के भार, इन भारों को बेंत की लता, छाल, वरत्रा (चमड़े की बनी मोटी रस्सी-बरत), रज्जु (रस्सी), बेल, कुश और डाभ (नारियल की जटा) आदि से बांधने से आलापनबंध समुत्पन्न होता है। यह बंध जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट संख्येय काल तक रहता है। यह आलापनबंध का स्वरूप है।
१४. से किं तं अल्लियावणबंधे ? अल्लियावणबंधे चउविहे पन्नत्ते,तं जहा–लेसणाबंधे उच्चयबंधे समुच्चयबंधे साहणणाबंधे। [१४ प्र.] भगवन् ! अल्लिकापन (आलीन) बंध किसे कहते हैं ?
[१४ उ.] गौतम! आलीनबंध चार प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार-श्लेषणाबंध, उच्चयबंध, समुच्चयबंध और संहननबंध।