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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
दीर्घिका, गुंजालिका, सरोवर, सरोवरों की पंक्ति, बड़े सरोवरों की पंक्ति, बिलों की पंक्ति, देवकुल (मंदिर), सभा, प्रपा (प्याऊ) स्तूप, खाई, परिखा (परिघा), प्राकार (किला या कोट), अट्टालक (अटारी, किले पर का कमरा या गढ़), चरक (गढ या नगर के मध्य का मार्ग), द्वार, गोपुर, तोरण, प्रासाद (महल), घर, शरणस्थान, लयन (गृहविशेष), आपण ( दूकान ), शृंगाटक (सिंघाड़े के आकार का मार्ग), त्रिक ( तिराहा ), चतुष्क (चौराहा), चत्वरमार्ग, (चौपड़ - बाजार का मार्ग), चतुर्मुख मार्ग और राजमार्ग ( बड़ी और चौड़ी सड़क) आदि का चूना, (गीली) मिट्टी, कीचड़ एवं श्लेष (वज्रलेप आदि) के द्वारा समुच्चयरूप से जो बंध समुत्पन्न होता है, उसे समुच्चयबंध कहते हैं। उसकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्येयकाल की है । इस प्रकार समुच्चयबंध का कथन पूर्ण हुआ ।
१८. से किं तं साहणणाबंधे ?
साहणणाबंधे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा—-देससाहणणाबंधे य सव्वसाहणणाबंधे य।
[१८ प्र.] भगवन् ! संहननबंध किसे कहते हैं ?
[१८ उ.] गौतम ! संहननबंध दो प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार - (१) देश - संहननबंध और (२) सर्वसंहननबंध |
१९. से किं तं देससाहणणाबंधे ?
देससाहणणाबंधे, जं णं सगड - रह - जाण - जुग्ग- गिल्लि - थिल्लि -सीय - संदमाणिया-लोहीलोहकडाह-कडुच्छुअ-आसण-सयण-खंभ- भंड-मत्त उवगरणमाईणं देससाहणणाबंधे समुप्पज्जंइ, जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जं कालं । से त्तं देससाहणणाबंधे ।
[१९ प्र.] भगवन्! देशसंहननबंध किसे कहते हैं ?
[१९ उ.] गौतम! शकट (गाड़ी), रथ यान (छोटी गाड़ी), युग्य वाहन ( दो हाथ प्रमाण वेदिका से उपशोभित जम्पान—पालखी), गिल्लि ( हाथी की अम्बाड़ी), थिल्लि (पलाण), शिविका ( पालखी), स्यन्दमानी (पुरुष प्रमाण वाहन विशेष म्याना), लोढी, लोहे की कड़ाही, कुड़छी, (चमचा बड़ा या छोटा), आसन, शयन स्तम्भ, भाण्ड (मिट्टी के बर्तन), पात्र नाना उपकरण आदि पदार्थों के साथ जो सम्बन्ध सम्पन्न होता है, वह देशसंहननबंध है। वह जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्टत: संख्येय काल तक रहता है। यह है देशसंहननबंध का स्वरूप ।
२०. से किं तं सव्वसाहणणाबंधे ?
सव्वसाहणणा बंधे, से णं खीरोदगभाईणं । से त्तं सव्वसाहणणाबंधे। से त्तं साहणणाबंधे। से तं अल्लियावणबंधे ।
[२० प्र.] भगवन् ! सर्वसंहननबंध किसे कहते हैं ?