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________________ ३५२ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [३१ उ.] गौतम ! उसके बावीस परीषह कहे गए हैं। यथा—क्षुधापरीषह, पिपासापरीषह, शीतपरीषह, दंशमशक-परीषह यावत् अलाभपरीषह। किन्तु वह एक साथ बीस परीषहों को वेदता है। जिस प्रकार सप्तविधबंधक के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार (सू. ३० के अनुसार) अष्टविधबन्धक के विषय में भी कहना चाहिए। ३२. छव्विहबंधगस्स णं भंते ! सरागछउमत्थस्स कति परीसहा पण्णता? गोयमा ! चौद्दस परीसहा पण्णत्ता, बारस पुण वेदेइ-जं समयं सीयपरीसहं वेदेइ णो तं समयं उसिणपरीसहं वेदेइ, जं समयं उसिणपरीसहं वेदेइ नो तं समयं सीयपरीसहं वेदेइ।जं समयं चरियापरीसहं वेदेइ णो तं समयं सेज्जापरीसहं वेदेइ, जं समयं सेज्जापरीसहं वेदेइ णो तं समयं चरिया परीसहं वेदेइ। [३२ प्र.] भगवन् ! छह प्रकार के कर्म बांधने वाले सराग छद्मस्थ जीव के कितने परीषह कहे गए है? [३२ उ.] गौतम ! उसे चौदह परीषह कहे गए है ? किन्तु वह एक साथ बारह परीषह वेदता है। जिस समय शीतपरीषह वेदता है, उस समय उष्णपरीषह का वेदन नहीं करता और जिस समय उष्णपरीषह का वेदन करता है, उस समय शीतपरीषह का वेदन नहीं करता और जिस समय शय्यापरीषह का वेदन करता है, उस समय चर्यापरीषह का वेदन नहीं करता। ३३.[१] एक्कविहबंधगस्स णं भंते ! वीयरागछउमत्थस्स कति परीसहा पण्णत्ता ? गोयमा ! एवं चेव जहेव छव्विहबंधगस्स। [३३-१ प्र.] भगवन् ! एकविधबन्धक वीतराग-छद्मस्थ जीव के कितने परीषह कहे गए हैं ?. [३३-१ उ.] गौतम ! षड्विधबन्धक के समान इसके भी चौदह परीषह कहे गए हैं, किन्तु वह एक सात बारह परीषहों का वेदन करता है। जिस प्रकार षड्विधबन्धक के विषय में कहा है, उसी प्रकार एकविधबन्धक के विषय में समझना चाहिए। [२] एगविहबंधगस्स णं भंते ! सजोगिभवत्थकेवंलिस्स कति परीसहा पण्णत्ता ? गोयमा ! एक्कारस परीसहा पण्णत्ता, नव पुण वेदेइ। सेसं जहा छव्विहबंधगस्स। [३३-२ प्र.] भगवन् ! एकविधबन्धक सयोगी-भवस्थकेवली के कितने परीषह कहे गए हैं ? । [३३-२ उ.] गौतम ! इसके ग्यारह परीषह कहे गए हैं, किन्तु वह एक साथ नौ परीषहों का वेदन करता है। शेष समग्र कथन षड्विधबन्धक के समान समझ लेना चाहिए। ३४. अबंधगस्स णं भंते ! अजोगिभवत्थकेवलिस्स कति परीसहा पण्णत्ता ? गोयमा ! एक्कारस परीसहा पण्णत्ता, नव पुण वेदेइ, जं समयं सीयपरीसहं वेदेइ नो तं समयं उसिणपरीसहं वेदेइ,जं समयं उसिणपरीसहं वेदेइ नो तं समयं सीयपरीसहं वेदेइ।जं समयं चरियापरीसहं वेदेइ नो तं समय सेजापरीसहं वेदेइ, जं समय सेज्जापरीसहं वेदेइ नो तं समयं चरियापरीसहं वेदेइ। [३४ प्र.] भगवन् ! अबन्धक अयोगीभवस्थकेवली के कितने परीषह कहे गए हैं ? [३४ उ.] गौतम ! उसके ग्यारह परीषह कहे गए हैं। किन्तु वह एक साथ नौ परीषहों का वेदन करता
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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