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अष्टम शतक : उद्देशक- ८
[२८-१ प्र.] भगवन् ! दर्शनमोहनीयकर्म में कितने परीषहों का समवतार होता है ? [ २८ - १ उ.] गौतम ! दर्शनमोहनीयकर्म में एक दर्शनपरीषह का समवतार होता है। [२] चरित्तमोहणिज्जे णं भंते ! कम्मे कति परीसहा समोयरंति ? गोयमा ! सत्त परीसहा समोयरंति, तं जहा-
अरती अचेल इत्थी निसीहिया जायणा य अक्कोसे।
सक्कारपुरक्कारे चरित्तमोहम्मि सत्तेत्ते ॥ २॥
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[ २८-२ प्र.] भगवन् ! चारित्रमोहनीयकर्म में कितने परीषहों का समवतार होता है ?
[ २८-२ उ.] गौतम ! चारित्रमोहनीय कर्म में सात परीषहों का समवतार होता है, वह इस प्रकारअरतिपरीषह, अचेलपरीषह, स्त्रीपरीषह, निषद्यापरीषह, याचनापरीषह, आक्रोशपरीषह और सत्कार - पुरस्कारपरीषह । इन सात परीषहों का समवतार चारित्रमोहनीयकर्म में होता है ।
२९. अंतराइए णं भंते ! कम्मे कति परीसहा समोयरंति ? गोयमा ! एगे अलाभपरीसहे समोयरइ ।
[[२९ प्र.] भगवन् ! अन्तरायकर्म में कितने परीषहों का समवतार होता है ? [२९. उ.] गौतम ! अन्तरायकर्म में एक अलाभपरीषह का समवतार होता है। ३०. सत्तविहबंधगस्स णं भंते ! कति परीसहा पण्णत्ता ?
गोयमा ! बावीसं परीसहा पण्णत्ता, वीसं पुण वेदेई— जं समयं सीयपरीसहं वेदेति णो तं समयं उसिणपरीसहं वेदेइ, जं समयं उसिणपरीसहं वेदेइ णो तं समयं सीयपरीसहं वेदेइ । जं समयं चरियापरीसहं वेदेति णो तं समयं निसीहियापरीसहं वेदेति, जं समयं निसीहियापरीसहं वेदेइ णो तं समयं चरियापरीसहं वेदेइ ।
[३० प्र.] भगवन् ! सप्तविधबन्धक (सात प्रकार के कर्मों को बांधने वाले) जीव के कितने परीषह बताए गए हैं ?
[ ३० उ.] गौतम ! उसके बावीस परीषह कहे गए हैं। परन्तु वह जीव एक साथ बीस परीषहों का वेदन करता है; क्योंकि जिस समय वह शीतपरीषह वेदता है, उस समय उष्णपरीषह का वेदन नहीं करता और जिस समय उष्णपरीषह का वेदन करता है, उस समय शीतपरीषह का वेदन नहीं करता तथा जिस समय चर्यापरीषह का वेदन करता है उस समय निषद्यापरीषह का वेदन नहीं करता और जिस समय निषद्यापरीषह का वेदन करता है, उस समय चर्यापरिषह का वेदन नहीं करता है।
३१. अट्ठविहबंधगस्स णं भंते ! कति परीसहा पण्णत्ता ?
गोयमा ! बावीस परीसहा पण्णत्ता० एवं (सु. ३० ) अट्ठविहबंधगस्स ।
[३१ प्र.] भगवन् ! आठ प्रकार के कर्म बांधने वाले जीव के कितने परीषह कहे गए हैं ?