SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 381
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५० व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [२३ प्र.] भगवन् ! कर्मप्रकृतियाँ कितनी कही गई हैं ? [२३ उ.] गौतम ! कर्मप्रकृतियां आठ कही गई हैं, यथा—ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय। २४. कइ णं भंते ? परीसहा पण्णत्ता? गोयमा ! बावीसं परीसहा पण्णत्ता, तं जहा—दिगिंछापरीसहे १, पिवासापरीसहे २, जाव दंसणपरीसहे २२। [२४ प्र.] भगवन् ! परीषह कितने कहे गए हैं ? [२४ उ.] गौतम ! परीषह बावीस कहे गए हैं, वे इस प्रकार—१. क्षुधा-परीषह, २. पिपासा-परीषह यावत् २२-दर्शन-परीषह। २५. एए णं भंते ! बावीसं परीसहा कतिसु कम्मपगडीसु समोयरंति ? गोयमा ! चउसु कम्मपयडीसु समोयरंति, तं जहा–नाणावरणिजे, वेयणिजे, मोहणिजे, अंतराइए। [२५ प्र.] भगवन् ! इन बावीस परीषहों का किन कर्मप्रकृतियों में समवतार (समावेश) हो जाता है ? [२५ उ.] गौतम ! चार कर्मप्रकृतियों में इन २२ परीषहों का समवतार होता है, वे इस प्रकार हैंज्ञानावरणीय, वेदनीय, मोहनीय और अन्तराय। २६. नाणावरणिज्जे णं भंते ! कम्मे कति परीसहा समोयरंति ? गोयमा ! दो परीसहा समोयरंति, तं जहा—पण्णापरीसहे नाणपरीसहे (अन्नाण परीसहे) य। [२६ प्र.] भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्म में कितने परीषहों का समवतार होता है ? [२६ उ.] गौतम ! ज्ञानावरणीयकर्म में दो परीषहों का समवतार होता है। यथा-प्रज्ञापरीषह और ज्ञानपरीषह (अज्ञानपरीषह)। २७. वेयणिज्जे णं भंते ! कम्मे कति परीसहा समोयरंति ? गोयमा ! एक्कारस परीसहा समोयरंति, तं जहा पंचेव आणुपुव्वी, चरिया, सेजा, वहे य रोगे य। तणफास जल्लमेव य, एक्कारस वेदणिजम्मि॥१॥ [२७ प्र.] भगवन् ! वेदनीयकर्म में कितने परीषहों का समवतार होता है ? [२७ उ.] गौतम ! वेदनीयकर्म में ग्यारह परीषहों का समवतार होता है। वे इस प्रकार हैं—अनुक्रम से पहले के पांच परीषह (क्षुधापरीषह, पिपासापरीषह,शीतपरीषह, उष्णपरीषह और दंशमशकपरीषह), चर्यापरीषह, शय्यापरीषह, वधपरीषह, रोगपरीषह, तृणस्पर्शपरीषह और जल्ल (मैल) परीषह। इन ग्यारह परीषहों का समवतार वेदनीय कर्म में होता है। २८.[१] दंसणमोहणिजे णं भंते ! कम्मे कति परीसहा समोयरंति ? गोयमा ! एगे दंसणपरीसहे समोयरइ।
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy