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________________ अष्टम शतक : उद्देशक-८ ३४९ अल्पकालिक हो जाता है। साम्परायिककर्मबंधक के भी ऐर्यापथिककर्मबंधक की तरह २६ भंग होते हैं । वे पूर्ववत् समझ लेने चाहिए । साम्परायिककर्मबंध-सम्बन्धी त्रैकालिक विचार-काल की अपेक्षा ऐर्यापथिककर्मबंध सम्बन्धी ८ भंग प्रस्तुत किये गए थे, लेकिन साम्परायिककर्मबंध अनादि काल से है। इसलिए भूतकाल सम्बन्धी जो 'ण बन्धी - नहीं बांधा' इस प्रकार के ४ भंग हैं, वे इसमे बन सकते। जो ४. भंग बन सकते हैं, उनका आशय इस प्रकार है- १. प्रथम भंग- बांधा था, बांधता है, बांधेगा—यह भग यथाख्यातचारित्रप्राप्ति से दो समय पहले तक सर्वसंसारी जीवों में पाया जाता है, क्योंकि भूतकाल में उन्होंने साम्परायिककर्म बांधा था, वर्तमान में बांधते हैं, और भविष्य में भी यथाख्यात चारित्रप्राप्ति के पहले तक बांधेंगे। यह प्रथम भंग अभव्यजीव की अपेक्षा भी घटित हो सकता है। २ – द्वितीय भंग-बांधा था, बांधता है, नहीं बांधेगा - यह भंग भव्य जीव की अपेक्षा से है। मोहनीय कर्म के क्षय से पहले उसने साम्परायिककर्म बांधा था, वर्तमान में बांधता है और आगामीकाल में मोहक्षय की अपेक्षा नहीं बांधेगा। ३. तृतीय भंग- बांधा था, नहीं बांधता, बांधेगायह भंग उपशम-श्रेणी प्राप्त जीव की अपेक्षा है । उपशम श्रेणी करने के पूर्व उसने साम्परायिककर्म बांधा था, वर्तमान में उपशान्तमोह होने से नहीं बांधता और उपशमश्रेणी से गिर जाने पर आगामीकाल में पुनः बांधेगा । ४. चतुर्थ भंग - बांधा था, नहीं बांधता, नहीं बांधेगा — यह भंग क्षपक श्रेणी प्राप्त क्षीणमोह जीव की अपेक्षा से है। मोहनीयकर्मक्षय के पूर्व उसने साम्परायिककर्म बांधा था, वर्तमान में मोहनीयकर्म का क्षय हो जाने से नहीं बांधता और तत्पश्चात् मोक्ष प्राप्त हो जाने से आगामी काल में नहीं बांधेगा । साम्परायिककर्मबंधक के विषय में सादि- सान्त आदि ४ विकल्प —– पूर्ववत् सादि-सपर्यवसित (सान्त) आदि ४ विकल्पों को लेकर साम्परायिककर्मबंध के विषय में प्रश्न उठाया गया है। इन चार भंगों में से सादि- अपर्यवसित- (अनन्त) को छोड़ कर शेष प्रथम, तृतीय और चतुर्थ भंगों से जीव साम्परायिककर्म बांधता है। जो जीव उपशमश्रेणी से गिर गया है और अगामी काल में पुनः उपशम श्रेणी या क्षपक श्रेणी को अंगीकार करेगा, उसकी अपेक्षा सादि सपर्यवसित नामक प्रथम भंग घटित होता है। जो जीव प्रारम्भ में ही क्षपक श्रेणी करने वाला है, उसकी अपेक्षा अनादि- सपर्यवसित नामक तृतीय भंग घटित होता है, तथा अभव्य जीव की अपेक्षा अनादि- अपर्यवसित नामक चतुर्थ भंग घटित होता है। सादि-अपर्यवसित नामक नामक दूसरा भंग किसी भी जीव में घटित नहीं होता। यद्यपि उपशमश्रेण से भ्रष्ट जीव सादिसाम्परायिकंबंधक होता है, किन्तु वह कालान्तर में अवश्य मोक्षगामी होता है, उस समय उसमें साम्परायिक कर्म का व्यवच्छेद हो जाता है, इसलिए अन्तरहितता उसमें घटित नहीं होती। बावीस परीषों का अष्टविध कर्मों में समवतार तथा सप्तविधबन्धकादि के परीषहों की प्ररूपणा २३. कइ णं भंते ! कम्मपयडीओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! अट्ठ कम्मपयडीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - णाणावरणिज्जं जाव अंतरायं । १. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक ३८५ से ३८७ २. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक ३८८
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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