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________________ छठा शतक : उद्देशक-१ [४ प्र.] भगवन् ! तब यह कैसे कहा जाता है कि जो महावेदना वाला है, वह महानिर्जरा वाला है, यावत् प्रशस्त निर्जरा वाला है ? [४ उ.] गौतम ! (मान लो,) जैसे दो वस्त्र हैं। उनमें से एक कर्दम (कीचड़) के रंग से रंगा हुआ है और दूसरा वस्त्र खंजन (गाड़ी के पहिये के कीट) के रंग से रंगा हुआ है। गौतम ! इन दोनों वस्त्रों में कौनसा वस्त्र दुधौतत्तर (मुश्किल से धुल सकने योग्य), दुर्वाम्यतर (बड़ी कठिनाई से काले धब्बे उतारे जा सकें, ऐसा) और दुष्परिकर्मतर (जिस पर मुश्किल से चमक लाई जा सके तथा चित्रादि बनाये जा सकें, ऐसा) है और कौन-सा वस्त्र सुधौततर (जो सरलता से धोया जा सके), सुवाम्यतर (आसानी से जिसके दाग उतारे जा सकें) तथा सुपरिकर्मतर (जिसपर चमक लाना और चित्रादि बनाना सुगम) है; कर्दमराग-रक्त या खंजनरागरक्त ? (गौतम स्वामी ने उत्तर दिया -) भगवन् ! उन दोनों वस्त्रों में जो कर्दम-रंग से रंगा हुआ है, वही (वस्त्र) दुर्घोततर दुर्वाम्यतर एवं दुष्परिकर्मतर है। (भगवान् ने इस पर फरमाया -) हे गौतम ! इसी तरह नैरयिकों के पाप-कर्म गाढ़ीकृत (गाढ बांधे हुए), चिक्कणीकृत (चिकने किये हुए), श्लिष्ट (निधत्त) किये हुए एवं खिलीभूत (निकाचित किये हुए) हैं, इसलिए वे सम्प्रगाढ वेदना को वेदते हुए भी महानिर्जरा वाले नहीं हैं तथा महापर्यवसान वाले भी नहीं हैं। अथवा जैसे कोई व्यक्ति जोरदार आवाज के साथ महाघोष करता हुआ लगातार जोर-जोर से चोट मार कर एरण को (हथौड़े से) कूटता-पीटता हुआ भी उस एरण (अधिकरणी) के स्थूल पुद्गलों को परिशटित (विनष्ट) करने में समर्थ नहीं हो सकता; इसी प्रकार हे गौतम ! नैरयिकों के पापकर्म गाढ़ किए हुए हैं; ......... यावत् इसलिए वे महानिर्जरा एवं महापर्यवसान वाले नहीं हैं। (गौतमस्वामी ने पूर्वोक्त प्रश्न का उत्तर पूर्ण किया-) भगवन् ! उन दोनों वस्त्रों में जो खंजन के रंग से रंगा हुआ है, वह वस्त्र सुधौततर, सुवाम्यतर और सुपरिकर्मतर है।' (इस पर भगवान् ने कहा –) हे गौतम ! इसी प्रकार श्रमण-निर्ग्रन्थों के यथाबादर (स्थूलतर स्कन्धरूप) कर्म, शिथिलीकृत (मन्द विपाक वाले), निष्ठितकृत (सत्तारहित किए हुए), विपरिणामित (विपरिणाम वाले) होते हैं। (इसलिए वे) शीघ्र ही विध्वस्त हो जाते हैं। जितनी कुछ (जैसी-कैसी) भी वेदना को वेदते हुए श्रमण-निर्ग्रन्थ महानिर्जरा और महापर्यवसान वाले होते हैं।' (भगवान् ने पूछा -) हे गौतम ! जैसे कोई पुरुष सूखे घास के पूले (तृणहस्तक) को धधकती अग्नि में डाल दे तो क्या वह सूखे घास का पूला धधकती आग में डालते ही शीघ्र जल उठता है ? (गौतम स्वामी ने उत्तर दिया-) हाँ, भगवन् ! वह शीघ्र ही जल उठता है। (भगवान् ने कहा -) हे गौतम ! इसी तरह श्रमण-निर्ग्रन्थों के यथाबादर कर्म शीघ्र ही विध्वस्त हो जाते हैं, यावत् वे श्रमण-निर्ग्रन्थ महानिर्जरा एवं महापर्यवसान वाले होते हैं। (अथवा) जैसे कोई पुरुष अत्यन्त तपे हुए लोहे के तवे (कडाह) पर पानी की बूंद डाले तो वह यावत्
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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