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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
[३-२ प्र.] भगवन् ! तो क्या वे (छठी-सातवीं नरकभूमि के नैरयिक) श्रमण-निर्ग्रन्थों की अपेक्षा भी महानिर्जरा वाले हैं ?
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[३-२ उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। (अर्थात् —– छठी-सातवीं नरक भूमि के नैरयिक श्रमणनिर्ग्रन्थों की अपेक्षा महानिर्जरा वाले नहीं हैं।)
४. से केणट्ठेणं भंते ! एवं वुच्चति जे महावेदणे जाव पसत्थनिज्जराए (सू. २ ) ?
गोयमा ! से जहानामए दुवे वत्थे सिया, एगे वत्थे कद्दमरागरत्ते, एगे वत्थे खंजणरागरत्ते । एतेसिं णं गोयमा ! दोन्हं वत्थाणं कतरे वत्थे दुधोयतराए चेव, दुवामतराए चेव, दुपरिकम्मतराए चेव ? करे वा वत्थे सुधोयतराए चेव, सुवामतराए चेव, सुपरिकम्मतराए चेव, जे वा से वत्थे कद्दमरागरत्ते ? जेवा से वत्थे खंजणरागरत्ते ?
भगवं ! तत्थ णं जे से वत्थे कद्दमरागरत्ते से णं वत्थे दुधोयतराए चेव, दुवामतराए चेव, दुप्परिकम्मतराए चेव ।
एवामेव गोयमा ! नेरइयाणं पावाई कम्पाइं गाढीकताई चिक्कणीकताई सिलिट्ठीकताई खिलीभूताइं भवंति ; संपगाढं पि य णं ते वेदणं वेदेमाणा नो महानिज्जरा, णो महापज्जवसाणा भवंति । से जहा वा केइ पुरिसे अहिगरणीं आउडेमाणे महता महता सद्देणं महता महता घोसेणं महता महता परंपराघातेणं नो संचाएति तीसे अहिगरणीए अहाबायरे वि पोग्गले परिसाडित्तए । एवामेव गोयमा ! नेरइयाणं पावाई कम्माई गाढीकयाई जाव नो महापज्जवसाणा भवंति ।
भगवं ! तत्थ जे से वत्थे खंजणरागरत्ते से णं वत्थे सुधोयतराए चेव, सुवामतराए चेव, सुपरिकम्मतराए चेव।
वामेव गोयमा ! समणाणं निग्गंथाणं अहाबायराई कम्माई सिढिलीकताइं निट्ठिताई कडाई विप्परिणामिताइं खिप्पामेव विद्धत्थाइं भवंति जावतियं तावतियं पि णं ते वेदणं वेदेमाणा महानिज्जरा महापज्जवसाणा भवंति। से जहानामए केइ पुरिसे सुक्कं तणहत्थयं जायतेयंसि पक्खिवेज्जा, से नूणं गोयमा ! से सुक्के तणहत्थए जायतेयंसि पक्खित्ते समाणे खिप्पामे व मसमसाविज्जति ?
हंता, मसमसाविज्जति ।
एवामेव गोयमा ! समणाणं निग्गंथाणं अहाबादराई कम्माई जाव महापज्जवसाणा भवंति । से जहानामए केइ पुरिसे तत्तंसि अयकवल्लंसि उदगबिंदू जाव हंता, विद्धंसमागच्छति । एवामेव गोमा ! समणाणं निग्गंथाणं जाव महापज्जवसाणा भवंति । से तेणेट्ठेणं जे महावेदणे से महानिजरे जाव निज्जराए ।
१.
यहाँ 'जाव' शब्द से 'जे महानिज्जरे से महावेदणे, महावेदणस्स य से सेए जे पसत्थनिज्जराए' यह पाठ समझना चाहिए ।