SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 371
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४० व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र मर्यादा को भी जीतव्यवहार कहते हैं। कारणवश किसी गच्छ में शास्त्रोक्त से अधिक प्रायश्चित्त प्रवृत्त हो गया हो, उसका अनुसरण करना भी जीतव्यवहार है। पूर्व-पूर्व व्यवहार के अभाव में उत्तरोत्तर व्यवहार आचरणीय मूलपाठ में स्पष्ट बता दिया है कि ५ व्यवहारों में से व्यवहर्ता मुमुक्षु के पास यदि आगम हो तो उसे आगम से, उसमें भी केवलज्ञानादि पूर्व-पूर्व के अभाव में उत्तरोत्तर से व्यवहार चलाना चाहिए। आगम के अभाव में श्रुत से, श्रुत के अभाव में आज्ञा से, आज्ञा के अभाव में धारणा से और धारणा के अभाव में जीतव्यवहार से प्रवृत्ति-निवृत्ति रूप व्यवहार करना चाहिए।' अन्त में फलश्रुति के साथ स्पष्ट निर्देश-जब-जब, जिस-जिस अवसर में, जिस-जिस प्रयोजन या क्षेत्र में, जो जो व्यवहार उचित हो, तब-तब उस-उस अवसर में, उस-उस प्रयोजन या क्षेत्र में, उस-उस व्यवहार का प्रयोग अनिश्रित-समस्त आशंसा-यश:कीर्ति, आहारदिलिप्सा से रहित तथा अनुपाश्रित-वैयावृत्य करने वाले शिष्यादि के प्रति सर्वथा पक्षापातरहित हो कर (अथवा राम-आसक्ति और द्वेष से रहित होकर) करना चाहिए। तभी वह भगवदाज्ञाराधक होगा।' विविध पहलुओं से ऐर्यापथिक और साम्परायिक कर्मबंध से संबंधित प्ररूपणा १०. कइविहे णं भंते ! बंधे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे बंधे पन्नत्ते, तं जहा—इरियावहियाबंधे य संपराइयबंधे य। [१० प्र.] भगवन् ! बंध कितने प्रकार का कहा गया है ? [१० उ.] गौतम ! बंध दो प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार-ईर्यापथिकबंध और साम्परायिकबंध। ११. इदिरयावहियं णं भंते ! कम्मं किं नेरइओ बंधइ, तिरिक्खजोणिओ बंधइ, तिरिक्ख जोणिणी बंधइ, मणुस्सो बंधइ, मणुस्सी बंधइ, देवो बंधइ, देवी बंधइ ? गोयमा ! नो नेरइओ बंधइ, नो तिरिक्खजोणिओ बंधइ, नो तिरिक्खजोणिणी बंधइ, नो देवो बंधइ, नो देवी बंधइ, पुव्वपडिवन्नए पडुच्च मणुस्सा य, मणुस्सीओ य बंधंति, पडिवजमाणए पडुच्च मणुस्सो वा बंधइ १, मणुस्सी वा बंधइ २, मणुस्सा वा बंधंति ३, मणुस्सीओ वा बंधंति ४, अहवा मणुस्सो य मणुस्सी य बंधइ ५, अहवा मणुस्सो य मणुस्सीओ य बंधंति ६, अहवा मणुस्सा य मणुस्सी य बंधंति ७, अहवा मणुस्सा य मणुस्सीओ य बंधंति ८। [११ प्र.] भगवन् ! ईर्यापथिककर्म क्या नैरयिक बंधता है, या तिर्यञ्चयोनिक बांधता है, या तिर्यञ्चयोनिक स्त्री बांधती है, अथवा मनुष्य बांधता है, या मनुष्य-स्त्री (नारी) बांधती है, अथवा देव बांधता है या देवी बांधती है? १. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक ३८४ २. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक ३८५
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy