SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 372
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अष्टम शतक : उद्देशक-८ ३४१ [११ उ.] गौतम ! ईर्यापथिककर्म न नैरयिक बांधता है, न तिर्यञ्चयोनिक बांधता है, न तिर्यञ्चयोनिक स्त्री बांधती है, न देव बांधता है और न ही देवी बांधती है, किन्तु पूर्वप्रतिपन्नक की अपेक्षा इसे मनुष्य पुरुष और मनुष्य स्त्रियाँ बांधती हैं; प्रतिपद्यमान की अपेक्षा मनुष्य-पुरुष बांधता है अथवा मनुष्य स्त्री बांधती है, अथवा बहुत-से मनुष्य-पुरुष बांधते हैं या बहुत-सी मनुष्य स्त्रियाँ बांधती हैं, अथवा एक मनुष्य-पुरुष और एक मनुष्य-स्त्री बांधती है, या एक मनुष्य-पुरुष और बहुत-सी मनुष्य-स्त्रियाँ बांधती हैं, अथवा बहुत-से मनुष्य पुरुष और एक मनुष्य-स्त्री बांधती है, अथवा बहुत-से मनुष्य-नर और बहुत-सी मनुष्य-नारियाँ बांधती हैं। १२. तं भंते ! किं इत्थी बंधइ, पुरिसो बंधइ, नपुंसगो बंधंति, इत्थीओ बंधंति, पुरिसा बंधंति, नपुंसगा बंधति ? नोइत्थी-नोपुरिसो-नोनपुंसगो बंधइ ? गोयमा ! नो इत्थी बंधइ, नो. पुरिसो बंधइ जाव नो नपुंसगो बंधइ। पुव्वपडिवन्नए पडुच्च अवगयवेदा बंधति, पडिवजमाणए य पडुच्च अवगयवेदो वा बंधइ, अवगयवेदा वा बंधंति। __ [१२ प्र.] भगवन् ! ऐर्यापथिक (कर्म) बंध क्या स्त्री बांधती है, पुरुष बांधता है, नपुंसक बांधता है, स्त्रियाँ बांधती हैं, पुरुष बांधते हैं या नपुंसक बांधते हैं, अथवा नोस्त्री-नोपुरुष-नोनपुंसक बांधता है ? [१२ उ.] गौतम ! इसे स्त्री नहीं बांधती, पुरुष नहीं बांधता, नपुंसक नहीं बांधता, स्त्रियाँ नहीं बांधती, पुरुष नहीं बांधते और नपुंसक भी नहीं बांधते, किन्तु पूर्वपतिपन्न की अपेक्षा वेदरहित (बहु) जीव बांधते हैं, अथवा प्रतिपद्यमान की अपेक्षा वेदरहित (एक) जीव बांधता है या (बहु) वेदरहित जीव बांधते हैं। १३. जइ भंते ! अवगयवेदो वा बंधइ, अवगयवेदा वा बंधंति तं भंते ! किं इत्थीपच्छाकडो बंधइ १, पुरिसपच्छाकडो बंधइ २, नपुंसकपच्छाकडो बंधइ ३, इत्थीपच्छाकडा बंधंति ४, पुरिसपच्छाकडा वि बंधंति ५, नपुंसगपच्छाकडा विबंधंति ६, उदाहु इत्थिपच्छाकडायपुरिसपच्छाकडो य बंधंति ४, उदाहु इत्थीपच्छाकडो य णपुसंगपच्छाकडो य बंधइ ४, उदाहु पुरिसपच्छाकडो य णपुंसगपच्छाकडो य बंधइ ४, उदाहु इत्थिपच्छाकडो य पुरिसपच्छाकडो य णपुंसगपच्छाकडो य भाणियव्वं ८, एवं एते छव्वीसं भंगा २६ जाव उदाहु इत्थीपच्छाकडा य पुरिसपच्छाकडा य नपुंसकपच्छाकडा य बंधंति ? गोयमा ! इत्थिपच्छाकडो वि बंधइ १, पुरिसपच्छाकडो वि बंधइ २, नपुंसगपच्छाकडो वि बंधइ ३, इत्थीपच्छाकडा वि बंधंति ४, पुरिसपच्छाकडा वि बंधंति ५, नपुंसकपच्छाकडा वि बंधंति ६, अहवा इत्थीपच्छाकडो य पुरिसपच्छाकडो य बंधइ ७, एवं एए चेव छव्वीसं भंगा भाणियव्वा जाव अहवा इत्थिपच्छाकडा य पुरिसपच्छाकडा य नपुंसगपच्छाकडा य बंधंति। [१३ प्र.] भगवन् ! यदि वेदरहित एक जीव अथवा वेदरहित बहुत जीव ऐर्यापथिक (कर्म) बंध बांधते हैं तो क्या १-स्त्री-पश्चात्कृत जीव (जो जीव भूतकाल में स्त्रीवेदी था, अब वर्तमान काल में अवेदी हो गया है) बांधता है; अथवा २–पुरुष-पश्चात्कृत जीव (जो जीव पहले पुरुषवेदी था, अब अवेदी हो गया है)
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy