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________________ ३२४ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र गोयमा ! सिय तिकिरिए जाव सिय अकिरिए। [१८ प्र.] भगवन् ! एक जीव (दूसरे जीवों के) औदारिकशरीरों की अपेक्षा कितनी क्रिया वाला होता है ? [१८ उ.] गौतम ! वह कदाचित् तीन क्रिया वाला, कदाचित् चार क्रिया वाला और कदाचित् पांच किया वाला तथा कदाचित् अक्रिय (क्रियारहित) भी होता है। १९. नेरइए णं भंते ! ओरालियसरीरेहितो कतिकिरिए ? . एवं एसो जहा पढमो दंडओ (सु. १५-१७) तहा इमो वि अपरिसेसो भाणियव्वो जाव वेमाणिय, नवरं मणुस्से जहा जीवे (सु०१८) [१९ प्र.] भगवन् ! एक नैरयिक जीव, (दूसरे जीवों के) औदारिकशरीरों की अपेक्षा कितनी क्रिया वाला होता है ? [१९ उ.] गौतम ! जिस प्रकार प्रथम दण्डक (सू. १५ से १७) में कहा गया है उसी प्रकार यह दण्डक भी सारा का सारा वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए; परन्तु मनुष्य का कथन सामान्य (औधिक) जीवों की तरह (सू. १८ में कहे अनुसार) जानना चाहिये। २०. जीवा णं भंते ! ओरालियसरीराओ कतिकिरिया ? गोयमा ! सिय तिकिरिया जाव सिय अकिरिया। [२० प्र.] भगवन् ! बहुत-से जीव, दूसरे के एक औदारिकशरीर की अपेक्षा कितनी क्रिया वाले होते हैं? [२० उ.] गौतम! वे कदाचित् तीन क्रिया वाले, कदाचित् चार क्रिया वाले और कदाचित् पांच क्रिया वाले होते हैं, तथा कदाचित् अक्रिय भी होते हैं। २१. नेरइया णं भंते ! ओरालियसरीराओ कतिकिरया ? एवं एसो वि जहा पढमो दंडओ (सु. १५-१७) तहा भाणियव्वो जाव वेमाणिया, नवरं मणुस्सा जहा जीवा (सु. २०)। [२१ प्र.] भगवन् ! बहुत-से नैरयिक जीव, दूसरे के एक औदारिकशरीर की अपेक्षा कितनी क्रिया वाले होते हैं? [२१ उ.] गौतम ! जिस प्रकार प्रथम दण्डक (सू. १५ से १७ तक) में कहा गया है, उसी प्रकार यह दण्डक भी वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए। विशेष यह है कि मनुष्यों का कथन औधिक जीवों की तरह (सू. २० के अनुसार) जानना चाहिए। २२. जीवा णं भंते ! आरोलियसरीरेहिंतो कतिकिरया ? गोयमा ! तिकिरिया वि, चउकिरिया वि, पंचकिरिया वि, अकिरिया वि। [२२ प्र.] भगवन् ! बहुत-से जीव, दूसरे जीवों के औदारिकशरीर की अपेक्षा कितनी क्रिया वाले होते हैं? [२२ उ.] गौतम ! वे कदाचित् तीन क्रिया वाले, कदाचित् चार क्रिया वाले और कदाचित् पांच क्रिया वाले और कदाचित् अक्रिय भी होते हैं।
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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