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अष्टम शतक : उद्देशक-६
३२५ २३. नेरइया णं भंते ! ओरालियसरीरेहितो कतिकिरया ? गोयमा ! तिकिरिया वि, चउकिरिया वि, पंचकिरिया वि।
[२३ प्र.] भगवन् ! बहुत-से नैरयिक जीव, दूसरे जीवों के औदारिकशरीरों की अपेक्षा कितनी क्रिया वाले होते हैं ?
[२३ उ.] गौतम ! वे तीन क्रिया वाले भी, चार क्रिया वाले भी और पांच क्रिया वाले भी होते हैं। २४. एवं जाव वैमाणिया, नवरं मणुस्सा जहा जीवा (सु. २२)
[२४] इसी तरह वैमानिकों पर्यन्त समझना चाहिए। विशेष इतना ही है कि मनुष्यों का कथन औधिक जीवों की तरह (सू. २२ से कहे अनुसार) जानना चाहिए।
२५. जीवे णं भंते ! वेउब्वियसरीराओ कतिकिरिए? गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिए अकिरिए। [२५ प्र.] भगवन् ! एक जीव, (दूसरे एक जीव के) वैक्रियशरीर की अपेक्षा कितनी क्रिया वाला होता है?
[२४ उ.] गौतम ! वह कदाचित् तीन क्रिया वाला, कदाचित् चार क्रिया वाला और कदाचित् क्रियारहित होता है।
२६. नेरइए णं भंते ! वेउब्वियसरीराओ कतिकिरए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए।
[२६ प्र.] 'भगवन् ! वह नैरयिक जीव, (दूसरे एक जीव के) वैक्रियशरीर की अपेक्षा कितनी क्रिया वाला होता है ?
[२६ उ.] गौतम ! वह कदाचित् तीन क्रिया वाला और कदाचित् चार क्रिया वाला होता है। २७. एवं जाव वेमाणिए, नवरं मणुस्से जहा जीवे (सु. २५)।
[२७] इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए। किन्तु मनुष्य का कथन औधिक जीव की तरह (सू. २५) कहना चाहिए।
२८. एवं जहा ओरालियसरीरेणं चत्तारि दंडगा भणिया तहा वेउव्वियसरीरेण वि चत्तारि दंडगा भाणियव्वा, नवरं पंचमकिरिया न भण्णइ, सेसं तं चेव। ___ [२८] जिस प्रकार औदारिकशरीर की अपेक्षा चार दण्डक कहे गए, उसी प्रकार वैक्रियशरीर की अपेक्षा भी चार दण्डक कहने चाहिए। विशेषता इतनी है कि इसमें पंचम क्रिया का कथन नहीं करना चाहिए। शेष सभी कथन पूर्ववत् समझना चाहिए।
२९. एवं जहा वेउव्वियं तहा आहारगं पि, तेयगं पि, कम्मगं पि भाणियव्वं। एक्केक्के चत्तारि दंडगा भाणियव्वा जाव वेमाणिया णं भंते ? कम्मगसरीरेहिंतो कइकिरिया ?
गोयमा ! तिकिरिया वि, चउकिरिया वि।