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________________ अष्टम शतक : उद्देशक-६ ३२१ हुए जल गए; यों कहा जा सकता है। ___ "[२] से जहा वा केइ पुरिसे वत्थं अहतं वा धोतं वा तंतुग्गयं वा मंजिट्ठादोणीए पक्खिवेजा, से नूणं गोयमा ! उक्खिप्पमाणे उक्खित्ते, पक्खिप्पमाणे पक्खित्ते, रजमाणे रत्ते त्ति वत्तव्वं सिया ? हंता, भगवं ! उक्खिप्पमाणे उक्खित्ते जाव रत्ते त्ति वत्तव्वं सिया । से तेणढेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-आराहए, नो विराहए।" [११-२] भगवन् का कथन—अथवा जैसे कोई पुरुष बिल्कुल नये (नहीं पहने हुए), या धोये हुए, अथवा तंत्र (करघे) से तुरन्त उतरे हुए वस्त्र को मजीठ के द्रोण (पात्र) में डाले तो हे गौतम ! उठाते हुए वह वस्त्र उठाया गया, डालते हुए डाला गया, अथवा रंगते हुए रंगा गया, यों कहा जा सकता है ? [गौतम स्वामी-] हाँ, भगवन् उठाते हुए वह वस्त्र उठाया गया, यावत् रंगते हुए रंगा गया, इस प्रकार कहा जा सकता है। [भगवान्—] इसी कारण से हे गौतम ! यों कहा जाता है कि (आराधना के लिए उद्यत हुआ साधु या साध्वी) आराधक है, विराधक नहीं है। विवेचन—अकृत्यसेवी किन्तु आराधनातत्पर निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थी की विभिन्न पहलुओं से आराधकता की सयुक्तिक प्ररूपणा—प्रस्तुत पाँच सूत्रों में अकृत्यसेवी किन्तु सावधान तथा क्रमशः स्थविरों व प्रवर्तिनी के समीप आलोचनादि के लिए प्रस्थित साधु या साध्वी की आराधकता का सदृष्टान्त प्ररूपण किया गया है। निष्कर्ष किसी साधु या साध्वी से भिक्षाचरी जाते, स्थंडिलभूमि या विहारभूमि (स्वाध्यायभूमि) जाते या ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए कहीं भी मूलगुणादि में दोषरूप किसी अकृत्य का सेवन हो गया हो, किन्तु तत्काल वह विचारपूर्वक स्वयं आलोचनादि करके प्रायश्चित् लेकर शुद्ध हो जाता है और अपने गुरुजनों के पास आलोचनादि करके प्रायश्चित् लेने हेतु प्रस्थान कर देता है, किन्तु संयोगवश पहुँचने से पूर्व ही गुरुजन मूक हो जाते हैं, या काल कर जाते हैं, अथवा स्वयं साधु या साध्वी मूक हो जाते हैं, या काल कर जाते हैं, इसी तरह पहुँचने के बाद भी इन चार अवस्थाओं में से कोई एक अंवस्था प्राप्त होती है तो वह साधु या साध्वी आराधक है, विराधक नहीं। कारण यह है कि उस साधु या साध्वी के परिणाम गुरुजनों के पास आलोचनादि करने के थे और वे इसके लिए उद्यत भी हो गए थे, किन्तु उपर्युक्त ८ प्रकार की परिस्थितियों में से किसी भी परिस्थितिवश वे आलोचनादि.न कर सके, ऐसी स्थिति में 'चलमाणे चलिए' इत्यादि पूर्वोक्त भगवत्सिद्धान्तानुसार वे आराधक ही हैं, विरोधक नहीं। "दृष्टान्तों द्वारा आराधकता की पुष्टि-भगवन् ने "चलमाणे चलिए" के सिद्धान्तानुसार ऊन, सण १. (क) भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक ३७६ ।। (ख) भगवती. हिन्दीविवेचनयुक्त भा. ३, पृ. १४०५
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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