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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र पडिसेविए, तीसे णं एवं भवइ इहेव ताव अहं एयस्स ठाणस्स आलोएमि जाव तवोकम्मं पडिवजामि तओ पच्छा पवत्तिणीए अंतियं आलोएस्सामि जाव पडिवजिस्सामि, सा य संपट्ठिया असंपत्ता, पवत्तिणी य अमुहा सिया, सा णं भंते ! किं आराहिया, विराहिया ?
गोयमा ! आराहिया, नो विराहिया।
[१०-१ प्र.] गृहस्थ के घर में आहार ग्रहण करने (पिण्डपात) की बुद्धि से प्रविष्ट किसी निर्ग्रन्थी (साध्वी) ने किसी अकृत्यस्थान का प्रतिसेवन कर लिया, किन्तु तत्काल उसको ऐसा विचार स्फुरित हुआ कि मैं स्वयमेव पहले यहीं इस अकृत्यस्थान की आलोचना कर लूँ, यावत् प्रायश्चित्तरूप तप:कर्म स्वीकार कर लूं। तत्पश्चात् प्रवर्तिनी के पास आलोचना कर लूंगी यावत् तप:कर्म स्वीकार कर लूंगी। ऐसा विचार कर उसी साध्वी ने प्रवर्तिनी के पास जाने के लिए प्रस्थान किया, प्रवर्तिनी के पास पहुंचने से पूर्व ही वह प्रवर्तिनी (वातादिदोष के कारण) मूक हो गई, (उसकी जिह्वा बंद हो गई-बोल नहीं सकी), तो हे भगवन् ! वह साध्वी आराधिका है या विराधिका ? _[१०-१ उ.] गौतम ! वह साध्वी आराधिका है, विराधिका नहीं।
[२] सा य संपट्ठिया जहा निग्गंथस्स तिण्णि गमा भणिया एवं निग्गंथीए वि तिण्णि आलावगा भाणियव्वा जाव आराहिया, नो विराहिया।
। [१०२] जिस प्रकार संप्रस्थित (आलोचनादि के हेतु स्थविरों के पास जाने के लिए रवाना हुए) निर्ग्रन्थ के तीन गम (पाठ) हैं। उसी प्रकार सम्प्रस्थित (प्रवर्तिनी के पास आलोचनादि हेतु रवाना हुई) साध्वी के भी तीन गम (पाठ) कहने चाहिए और वह साध्वी आराधिका है, विराधिका नहीं, यहाँ तक सारा पाठ कहना चाहिए।
११.[१] से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चई-आराहाए, नो विराहए ?
"गोयमा ! से जहानामए केइ पुरिसे एगं महं उण्णलोमं वा गयलोमं वा सणलोमं वा कप्पासलोमं वा तणसूयं वा दुहा वा तिहा वा संखेजा वा छिंदित्ता अगणिकायंसि पक्खिवेज्जा, से नूणं गोयमा ! छिज्जमाणे छिन्ने, पक्खिप्पमाणे पक्खित्ते, डज्झमाणे दड्ढे त्ति वत्तव्वं सिया !
हंता भगवं ! छिज्जमाणे छिन्ने जाव दड्ढे त्ति वत्तव्वं सिया।
[११-१ प्र.] भगवन् ! किस कारण से आप कहते हैं, कि वे (पूर्वोक्त प्रकार के साधु और साध्वी) आराधक हैं, विराधक नहीं ?
[११-१ उ.] गौतम ! जैसे कोई पुरुष एक बड़े ऊन (भेड़) के बाल के या हाथी के रोम के अथवा सण के रेशे के या कपास के रेशे के अथवा तृण (घास) के अग्रभाग के दो, तीन या संख्यात टुकड़े करे अग्निकाय (आग) में डाले तो हे गौतम ! काटे जाते हुए वे (टुकड़े) काटे गए, अग्नि में डाले जाते हुए को डाले गए या जलते हुए को जल गए, इस प्रकार कहा जा सकता है ?
(गौतम स्वामी-) हाँ भगवन् ! काटे जाते हुए काटे गए अग्नि में डाले जाते हुए डाले गए और जलते