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________________ अष्टम शतक : उद्देशक-५ ३०७ अनुमोदन करता नहीं, काया से; २६. अथवा दूसरों से करवाता नहीं, करते हुए का अनुमोदन करता नहीं, मन से; २७. अथवा दूसरों से करवाता नहीं, करते हुए का अनुमोदन करता नहीं, वचन से; २८. अथवा दूसरों से करवाता नहीं, करते हुए का अनुमोदन करता नहीं, काया से।। जब एकविध-त्रिविध प्रतिक्रमण करता है, तब २९. स्वयं करता नहीं, मन, वचन और काया से;३०. अथवा दूसरों से करवाता नहीं, मन वचन और काया से; ३१. अथवा करते हुए का अनुमोदन करता नहीं, मन, वचन और काया से। __ जब एकविध-द्विविध प्रतिक्रमण करता है, तब ३२. स्वयं करता नहीं, मन और वचन से; ३३. अथवा स्वयं करता नहीं, मन और काया से; ३४. अथवा स्वयं करता नहीं, वचन और काया से; ३५. अथवा दूसरों से करवाता नहीं, मन और वचन से; ३६. अथवा दूसरों से करवाता नहीं, मन और काया से; ३७. अथवा दूसरों से करवाता नहीं, वचन और काया से; ३८. अथवा करते हुए का अनुमोदन करता नहीं, मन और वचन से; ३९. अथवा करते हुए का अनुमोदन करता नहीं, मन और काया से; ४०.अथवा करते हुए का अनुमोदन करता नहीं, वचन और काया से। जब एकविध-एकविध प्रतिक्रमण करता है, तब ४१. स्वयं करता नहीं, मन से; ४२. अथवा स्वयं करता नहीं, वचन से; ४३. अथवा स्वयं करता नहीं, काया से; ४४. अथवा दूसरों से करवाता नहीं, मन से; ४५. अथवा दूसरों से करवाता नहीं, वचन से; ४६ अथवा दूसरों से करवाता नहीं, काया से; ४७. अथवा करते हुए का अनुमोदन करता नहीं, मन से; ४८. करते हुए का अनुमोदन करता नहीं, वचन से; ४९. अथवा करते हुए का अनुमोदन करता नहीं, काया से। [३] पडुप्पन्नं संवरमाणे किं तिविहं तिविहेणं संवरेइ ? एवं जहा पडिक्कममाणेणं एगूणपण्णं भंगा भणिया एवं संवरमाणेण वि एगूणपण्णं भंगा भाणियव्वा। [६-३ प्र.] भगवन् ! प्रत्युत्पन्न (वर्तमानकालीन) संवर करता हुआ श्रावक क्या त्रिविध-त्रिविध संवर करता है ? (इत्यादि समग्र प्रश्न पूर्ववत् यावत् एकविध-एकविध संवर करता है ?) [६-३ उ.] गौतम ! (प्रत्युत्पन्न का संवर करते हुए श्रावक के पहले कहे अनुसार त्रिविध-त्रिविध से लेकर एकविध-एकविध तक) जो उनचास (४९) भंग प्रतिक्रमण के विषय में कहे गए हैं, वे ही संवर के विषय मे कहने चाहिए। [४] अणागतं पच्चक्खमाणे किं तिविहं तिविहेणं पच्चक्खाइ ? एवं ते चेव भंगा एगूणपण्णं भाणियव्वा जाव अहवा करेंतं नाणुजाणइ कायसा। [६-४ प्र.] भगवन् ! अनागत (भविष्यत्) काल (के प्राणातिपात) का प्रत्याख्यान करता हुआ श्रावक का त्रिविध-त्रिविध प्रत्याख्यान करता है ? इत्यादि समग्र प्रश्न पूर्ववत्। [६-४ उ.] गौतम ! पहले (प्रतिक्रमण के विषय में) कहे अनुसार यहाँ भी उनचास (४९) भंग कहने चाहिये, यावत् —अथवा करते हुए का अनुमोदन नहीं करता, काया से; -तक कहना चाहिए।
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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