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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
७. समणोवासगस्स णं भंते ! पुव्वामेव थूलमुसावादे अपच्चक्खाए भवइ, से णं भंते ! पच्छा पच्चाइक्खमाणे ?
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एवं जहा पाणाइवातस्स सीयालं भंगसतं ( १४७) भणितं तहा मुसावादस्स वि भाणियव्वं । [७ प्र.] भगवन् ! जिस श्रमणोपासक ने पहले स्थूल मृषावाद का प्रत्याख्यान नहीं किया, किन्तु पीछे वह स्थूल मृषावाद (असत्य) का प्रत्याख्यान करता हुआ क्या करता है ?
[७ उ.] गौतम ! जिस प्रकार प्राणातिपात के ( अतीत के प्रतिक्रमण, वर्तमान के संवर और भविष्य के प्रत्याख्यान; यों त्रिकाल) के विषय में कुल (४९×३ = १४७) एक सौ सैंतालीस भंग कहे गए हैं, उसी प्रकार मृषावाद के सम्बंध में भी एक सौ सैंतालीस भंग कहने चाहिए।
८. एवं अदिणादाणस्स वि । एवं थूलगस्स मेहुणस्स वि । थूलगस्स परिग्गहस्स वि जाव अहवा करेंतं नाणुजाणति कायसा ।
[८] इसी प्रकार स्थूल अदत्तादान के विषय में, स्थूल मैथुन के विषय में एवं स्थूल परिग्रह के विषय में भी पूर्ववत् प्रत्येक के एक सौ सैंतालीस त्रिकालिक भंग अथवा 'पाप करते हुए का अनुमोदन नहीं करता, काया से; ' यहाँ तक कहना चाहिए।
विवेचन-श्रावक के प्राणातिपात आदि पापों के प्रतिक्रमण- संवर- प्रत्याख्यान सम्बन्धी भंगों की प्ररूपणा - प्रस्तुत तीन सूत्रों (सू. ६ से ८ तक) में प्राणातिपात आदि पापों के स्थूल रूप से प्रतिक्रमण करने, संवर करने और प्रत्याख्यान करने की विधि के रूप में प्रत्येक के ४९ - ४९ भंग बताए गए हैं।
श्रावक को प्रतिक्रमण, संवर और प्रत्याख्यान करने के लिए प्रत्येक के ४९ भंग-तीन करण हैं— करना, कराना और अनुमोदन करना, तथा तीन योग हैं, मन, वचन और काया । इनके संयोग से विकल्प नौ और भंग उननचास होते हैं। उनकी तालिका इस प्रकार है
विकल्प करण
योग
भंग
१
३
१ तीन तीन
२
तीन
४
६
तीन
एक
तीन
एक
३
३
विवरण
कृत, कारित, अनुमोदित का मन, वचन, काय से निषेध ।
कृत, कारित, अनुमोदित का मन-वचन से, मन काय से, वचनकाय से निषेध ।
९
कृत- कारित - अनुमोदित मन से, वचन से, काय से निषेध ।
कृत-कारित, कृत-अनुमोदित और कारित - अनुमोदित का मनवचन काय से और वचन - काय से निषेध
९ कृत- कारित, कृत- अनुमोदित और कारित - अनुमोदित का मनवचन से, मन - काय से और वचन - काय से निषेध ।
कृत- कारित का. मन से, वचन से, काय से; कृत- अनुमोदित का मन-वचन काय से; कारित - अनुमोदित का भी इसी प्रकार निषेध ।