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________________ अष्टम शतक : उद्देशक-३ बहुबीजक फलों के प्रज्ञापनासूत्र में उल्लिखित नाम इस प्रकार हैं अस्थिय-तेंदू-कविठे-अंबाडग-माउलुंगबिल्ले य। आमलग-फणस-दाडिम आसोठे उंबर-वडे य॥ अस्थिक, तिन्दुक, कविठ्ठ, आम्रातक, मातुलुंग (बिजौरा), बेल, आँवला, फणस (अनन्नास), दाडिम, अश्वत्थ, उदुम्बर और वट, ये बहुबीजक फल हैं। अनेकजीविक फलदार वृक्षों के भी प्रज्ञापना में कुछ नाम इस प्रकार गिनाए हैं - एएसिं मूला वि असंखेजजीविया, कंदावि खंधावि तयावि, सालावि पवालावि, पत्ता पत्तेयजीविया पुप्फा अणेगजीविया फला बहुबीयगा।" इन (पूर्वोक्त) वृक्षों के मूल भी असंख्यातजीविक हैं । कन्द, स्कन्ध, त्वचा (छाल),शाखा, प्रवाल (नये कोमल पत्ते), पत्ते प्रत्येकजीवी हैं, फूल अनेक जीविक हैं, फल बहुबीज वाले हैं। छिन्न कछुए आदि के टुकड़ों के बीच का जीवप्रदेश स्पृष्ट और शस्त्रादि के प्रभाव से रहित ६.[१] अह भंते ! कुम्मे कुम्मावलिया, गोहे गोहावलिया, गोणे गोणावलिया, मणुस्से मण्णुस्सावलिया, महिसे महिसावलिया, एएसि णं दुआ वा तिहा वा संखेजहा वा छिन्नाणं जे अंतरा ते विणं तेहिं जीवपदेसेहिं फुडा? । हंता, फुडा। __ [६-१ प्र.] भगवन् ! कछुआ, कछुओं की श्रेणी (कूर्मावली), गोधा (गोह), गोधा की पंक्ति (गोधावलिका), गाय, गायों की पंक्ति, मनुष्य, मनुष्यों की पंक्ति, भैंसा, भैंसों की पंक्ति, इन सबके दो या तीन अथवा संख्यात खण्ड (टुकड़े) किये जाएँ तो उनके बीच का भाग (अन्तर) क्या जीवप्रदेशों में स्पृष्ट (व्याप्त—छुआ हुआ) होता है ? [६-१ उ.] हाँ, गौतम ! वह (बीच का भाग जीवप्रदेशों से) स्पृष्ट होता है। [२] पुरिसे णं भंते ! ते अंतरे हत्थेण वा पादेण वा अंगुलियाए वा सलागाए वा कडेण वा किलिंचेण वा आमुसमाणे वा सम्मुसमाणे वा आलिहमाणे वा विलिहमाणे वा अन्नयरेण वा तिक्खेणं सत्थजातेणं आच्छिदेमाणे वा विच्छिदेमाणे वा अगणिकाएणं वा समोडहमाणे तेसिं जीवपदेसाणं किंचि आबाहं वा वाबाहं वा उप्पायइ ? छविच्छेदं वा करेइ ? णो इणढे समढे, नो खलु तत्थ सत्थं संकमति। __ [६-२ प्र.] भगवन् ! कोई पुरुष उन कछुए आदि के खण्डों के बीच के भाग को हाथ से, पैर से अंगली १. (क) भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक ३६४-३६५ " (ख) प्रज्ञापनासूत्र (महावीर विद्यालय०) पद १, सूत्र ४७, गाथा ३७-३८ (ग) प्रज्ञापनासूत्र (महावीर विद्यालय०) पद १, सूत्र ४०, गाथा १३-१४-१५
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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