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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
कहना चाहिए। इस प्रकार यह बहुबीजकों का वर्णन हुआ। और (इसके साथ ही) असंख्यातजीव वाले वृक्षों का वर्णन भी पूर्ण हुआ ।
किं तं अणंतजीविया ?
५.
. अनंतजीविया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा— आलुए मूलए सिंगबेरे एवं जहा सत्तसमए (स० ७ उ० ३ सु० ५) जाव सीउंढी मुसुंढी, जे यावन्ने तहप्पकारा । से त्तं अनंतजीविया ।
[५ प्र.] भगवन् ! अनन्तजीव वाले वृक्ष कौन-से हैं ?
[५ उ.] गौतम ! अनन्तजीव वाले वृक्ष अनेक प्रकार के कहे गए हैं, जैसे- आलू, मूला, श्रृंगबेर (अदरख) आदि। इस प्रकार भगवतीसूत्र के सप्तम शतक के तृतीय उद्देशक सूत्र ५ में कहे अनुसार 'सिउंढी, मुसुंढी' तक जानना चाहिए। ये और इनके अतिरिक्त जितने भी इस प्रकार के अन्य वृक्ष हैं, उन्हें भी (अनन्तजीव वाले) जान लेना चाहिए। यह हुआ उन अनन्तजीव वाले वृक्षों का कथन ।
विवेचन — संख्यातजीविक, असंख्यातजीविक और अनन्तजीविक वृक्षों का निरूपण - प्रस्तुत तृतीय उद्देशक के प्रारम्भिक पांच सूत्रों में वृक्षों के तीन प्रकार का और फिर उनमें से प्रत्येक प्रकार के वृक्षों का परिचय दिया है।
संख्यातजीविक, असंख्यातजीविक और अनन्तजीविक का विश्लेषण — जिन में संख्यातजीव हों उन्हें संख्यातजीविक कहते हैं, प्रज्ञापना में दो गाथाओं द्वारा नालिकेरी तक इनके नामों का उल्लेख किया है—
ताल तमाले तेतलि, साले य सारकल्लाणे । सरले जायड़ के कदलि तह चम्मरुक्खे य ॥ १ ॥ भुरुक्खे हिंगुरुक्खेय लवंगरुक्खे य होइ बोद्धव्वे | पूयफली खजूरी बोधव्वा नालियेरी य ॥ २ ॥
अर्थात्— ताड़, तमाल, तेतलि (इमली), साल सारकल्याण, सरल, जाई, केतकी, कदली (केला) तथा चर्मवृक्ष, भुर्जवृक्ष, हिंगुवृक्ष और लवंगवृक्ष, पूगफली (पूगीफल - सुपारी), खजूर और नारियल के वृक्ष संख्यातजीविक समझने चाहिए। असंख्यातजीविक मुख्यतया दो प्रकार के हैं – एकास्थिक और बहुबीजक । जिन फलों में एक ही बीज (या गुठली ) हो वे एकास्थिक और जिन फलों में बहुत-से बीज हों, बहुबीजकअनेकास्थिक कहलाते हैं। प्रज्ञापनासूत्र में एकास्थिक के कुछ नाम इस प्रकार दिये गए हैं
'निबंब-जम्बुकोसंब साल अंकोल्लपीलु सल्लूया ।
सल्लइमोयइमालुय बउलपलासे करंजे य ॥ १॥
मालुक,
अर्थात्–नीम, आम, जामुन, कोशाम्ब, साल अंकोल्ल, पीलू, सल्लूक, सल्लकी, मोदकी, बकुल, पलाश और करंज इत्यादि फल एकास्थिक जानने चाहिए।