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________________ २९८ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र से शलाका (सलाई) से, काष्ठ से या लकड़ी से छोटे-से टुकड़े से थोड़ा स्पर्श करे, विशेष स्पर्श करे, थोड़ासा खींचे, या विशेष खींचे, या किसी तीक्ष्ण (शस्त्रसमूह) से थोड़ा छेद, अथवा विशेष छेदे, अथवा अग्निकाय से उसे जलाए तो क्या उन जीवप्रदेशों को थोड़ी या अधिक बाधा (पीड़ा) उत्पन्न कर पाता है, अथवा उसके किसी भी अवयव का छेद कर पाता है ? [६-२ उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, (अर्थात् वह जरा-सी भी पीड़ा नहीं पहुंचा सकता और न अंगभंग कर सकता है।); क्योंकि उन जीवप्रदेशों पर शस्त्र (आदि) का प्रभाव नहीं होता है। विवेचन — छिन्न- कछुए आदि के टुकड़ों के बीच का जीवप्रदेश स्पृष्ट और शस्त्रादि के प्रभाव से रहित प्रस्तुत सूत्र (सू. ६) में दो तथ्यों का स्पष्ट निरूपण किया गया है. - (१) किसी भी जीव के शरीर के टुकड़े-टुकडे कर देने पर भी उसके बीच के भाग कुछ काल तक जीवप्रदेशों से स्पृष्ट रहते हैं तथा (२) कोई भी व्यक्ति जीवप्रदेशों का हाथ आदि से छुए, खींचे, शस्त्रादि से काटे तो उन पर उसका कोई असर नहीं होता।' रत्नप्रभादि पृथ्वियों के चरमत्व - अचरमत्व का निरूपण ७. कति णं भंते! पुढवीओ पण्णत्तओ ? गोयमा ! अट्ठ पुढवीओ पन्नत्ताओ, तं जहा - रयणप्पभा जाव अहेसत्तमा पुढवी, ईसिपारा । [७ प्र.] भगवन् ! पृथ्वियाँ कितनी कही गई हैं ? [७ उ.] गौतम! पृथ्वियां आठ कही गई हैं, वे इस प्रकार - रत्नप्रभापृथ्वी यावत् अधः सप्तमा (तमस्तमा) पृथ्वी और ईषत्प्राग्भारा (सिद्धशिला) । ८. इमा णं भंते ! रयणप्पभापुढवी किं चरिमा, अचरिमा ? चरिमपदं निरवसेसं भाणियव्वं जाव वेमाणिया णं भंते ! फासचरिमेणं किं चरिमा अचरिमा ? . गोयमा ! चरिमा वि अचरिमा वि। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति भगवं गोयमे० । ॥ अट्ठमस : तइओ उद्देसओ समत्तो ॥ [८ प्र.] भगवन् ! क्या यह रत्नप्रभापृथ्वी चरम (प्रान्तवर्ती - अन्तिम ) है, अथवा अंचरम (मध्यवर्ती) है ? [८ उ.] (गौतम ! ) यहाँ प्रज्ञापनासूत्र का समग्र चरमपद (१० वां) भगवन् ! वैमानिक स्पर्शचरम से क्या चरम हैं, अथवा अचरम हैं ? तक कहना चाहिए । (उ.) गौतम ! वे चरम भी हैं और अचरम भी हैं। १. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ - टिप्पणयुक्त) भा. १, पृ. ३५३
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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