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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र एवं चेव। [१५७-१ प्र.] भगवन् ! श्रुतज्ञान के पर्याय कितने कहे गए हैं ? [१५७-१ उ.] गौतम ! श्रुतज्ञान के भी अनन्त पर्याय कहे गए है। [२] एवं जाव केवलनाणस्स। [१५७-२] इसी प्रकार यावत् (अवधिज्ञान, मनःपर्यायज्ञान), केवलज्ञान के भी अनन्त पर्याय कहे गए
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१५८. एवं मतिअन्नाणस्स सुयअन्नाणस्स। [१५८] इसी प्रकार मति-अज्ञान और श्रुत-अज्ञान के भी अनन्त पर्याय कहे गए हैं। १५९. केवतिया णं भंते ! विभंगनाणपज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! अणंता विभंगनाणपज्जवा पण्णत्ता। २०। [१५९ प्र.] भगवन् ! विभंगज्ञान के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [१५९ उ.] गौतम ! विभंगज्ञान के अनन्त पर्याय कहे गए हैं।
(पर्यायद्वार) ज्ञान और अज्ञान के पर्यायों का अल्पबहुत्व
१६०. एतेसि णं भंते ! आभिणिबोहियनाणपज्जवाणं सुयनाणपजवाणं ओहिनाणपज्जवाणं मणपज्जवनाणपज्जवाणं केवलनाणपज्जवाण य कतरे कतरेहिंतो जाव विसेसाहिया वा? .
गोयमा ! सव्वत्थोवा मणपजवनाणपजवा, ओहिनाणपजवा अणंतगुणा, सुयनाणपज्जवा अणंतगुणा, आभिणिबोहियनाणपजवा अणंतगुणा, केवलनाणपजवा अणंतगुणा।
। [१६०प्र.] भगवन् ! इन (पूर्वोक्त) आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान और केवलज्ञान के पर्यायों में किनके पर्याय, किनके पर्यायों से अल्प, यावत् (बहुत, तुल्य या) विशेषाधिक हैं ?
___ [१६० उ.] गौतम ! मन:पर्यवज्ञान के पर्याय सबसे थोड़े हैं, उनसे अवधिज्ञान के पर्याय अनन्तगुणे हैं, उनसे श्रुतज्ञान के पर्याय अनन्तगुणे हैं, उनसे आभिनिबोधिकज्ञान के पर्याय अनन्तगुणे हैं और उनसे केवलज्ञान के पर्याय अनन्तगुणे हैं।
१६१. एएसि णं भंते ! मइअन्नाणपज्जवाणं सुयअन्नाणपज्जवाणं विभंगनाणपज्जवाण य कतरे कतरेहितो जाव विसेसाहिया वा?
गोयमा ! सव्वत्थोवा विभंगनाणपज्जवा, सुयअन्नाणपज्जवा अणंतगुणा, मतिअन्नाणपजवा अणंतगुण।
। [१६१ प्र.] भगवन् ! इन (पूर्वोक्त) मति-अज्ञान, श्रुत-अज्ञान और विभंगज्ञान के पर्यायों में किनके पर्याय, किनके पर्यायों से यावत् (अल्प, बहुत, तुल्य या) विशेषाधिक हैं ?
। [१६१ उ.] गौतम ! सबसे थोड़े विभंगज्ञान के पर्याय हैं, उनसे श्रुत-अज्ञान के पर्याय अनन्तगुणे हैं और