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________________ अष्टम शतक : उद्देशक-२ २८३ १४१. अवेदगा जहा अकसाई (सु. १३९)।१४। [१४१] अवेदक (वेदरहित) जीवों का कथन अकषायी जीवों के समान (सू. १३९ के अनुसार) जानना चाहिए। (चौदहवाँ द्वार) १४२. आहारगा णं भंते ! जीवा०? जहा सकसाई (सु. १३८), नवरं केवलनाणं पि। [१४२ प्र.] भगवन् ! आहारक जीव ज्ञानी होते हैं, या अज्ञानी ? [१४२ उ.] गौतम ! आहारक जीवों का कथन सकषायी जीवों के समान (सू. १३८ के अनुसार) जानना चाहिए, किन्तु इतना विशेष है कि उनमें केवलज्ञान भी पाया जाता है। १४३. अणाहारगा णं भंते ! जीवा किं नाणी, अण्णाणी ? मणपज्जवनाणवज्जाइं नाणाई, अन्नाणाणि य तिण्णि भयणाए।१५। [१४३ प्र.] भगवन् ! अनाहारक जीव ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी ? [१४३] गौतम ! वे ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी भी। जो ज्ञानी हैं, उनमें मन:पर्यवज्ञान को छोड़ कर शेष चार ज्ञान पाए जाते हैं और जो अज्ञानी हैं, उनमें तीन अज्ञान भजना से पाए जाते हैं। (पन्द्रहवाँ द्वार) विवेचन दसवें उपयोगद्वार से पन्द्रहवें आहारकद्वार तक के जीवों में ज्ञान और अज्ञान की प्ररूपणा–प्रस्तुत २३ सूत्रों (सू. ११८ से १४३ तक) में उपयोग, योग, लेश्या, कषाय, वेद और आहार, इन छह प्रकारों के विषयों से सहित और रहित जीवां में पाए जाने वाले ज्ञान और अज्ञान की प्ररूपणा की गई है। १०. उपयोगद्वार–उपयोग एक तरह से ज्ञान ही है, जो जीव का लक्षण है, जीव में अवश्य पाया जाता है। इसके दो प्रकार हैं—साकार-उपयोग और निराकार-उपयोग। साकार का अर्थ है—विशेषतासहित बोध । उसका उपयोग, अर्थात्—ग्रहण-व्यापार, साकारोपयोग (ज्ञानोपयोग) कहलाता है। साकारोपयोगयुक्त जीव ज्ञानी और अज्ञानी दोनों प्रकार के होते हैं। ज्ञानी जीवों में से कुछ जीवों में दो, कुछ जीवों में तीन, कुछ जीवों में चार और कुछ जीवों में एकमात्र केवलज्ञान होता है; इस तरह ऐसे जीवों में पांच ज्ञान भजना से होते हैं। इनका कथन यहाँ ज्ञानलब्धि की अपेक्षा से समझना चाहिए, उपयोग की अपेक्षा से तो एक समय में एक ही ज्ञान अथवा एक ही अज्ञान होता है। इनमें जो जीव अज्ञानी है, तीन अज्ञान भजना से पाए जाते हैं। आभिनिबोधिक (मति) ज्ञान आदि साकारोपयोग के भेद हैं। आभिनिबोधिक आदि से युक्त साकारोपयोग वाले जीवों में ज्ञान-अज्ञान का कथन उपर्युक्त वर्णनानुसार उस-उस ज्ञान या अज्ञान की लब्धि वाले जीवों के समान जानना चाहिए। __ अनाकारोपयोग—जिस ज्ञान में आकार अर्थात्—जाति, गुण, क्रिया आदि स्वरूपविशेष का प्रतिभास (बोध) न हो, उसे अनाकारोपयोग (दर्शनोपयोग) कहते हैं। अनाकारोंपयोगयुक्त जीव ज्ञानी और अज्ञानी दोनों तरह के होते हैं । ज्ञानी जीवों में लब्धि की अपेक्षा पांच ज्ञान भजना से और अज्ञानी जीवों में लब्धि की अपेक्षा तीन अज्ञान भजना से पाए जाते हैं। चक्षुदर्शन-अचक्षुदर्शन वाले जीव केवली नहीं होते, इसलिए
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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