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________________ २८२ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ___[१३५-२] इसी प्रकार यावत् (नीललेश्या, कापोतलेश्या, तेजोलेश्या) , पद्मलेश्या वाले जीवों का कथन करना चाहिए। १३६. सुक्कलेस्सा जहा सलेस्सा (सु. १३४)। [१३६] शुक्ललेश्या वाले जीवों का कथन सलेश्य जीवों के समान (सू. १३४ के अनुसार) समझना चाहिए। १३७. अलेस्सा जहा सिद्धा (सु. ३८)।१२। ___ [१३७] अलेश्य (लेश्यारहित) जीवों का कथन सिद्धों के समान (सू. ३८ के अनुसार) जानना चाहिए। (बारहवाँ द्वार) १३८.[१] सकसाई णं भते ! ०? जहा सइंदिया (सु.४४)। [१३८-१ प्र.] भगवन् ! सकषायी जीव ज्ञानी हैं, या अज्ञानी ? [१३८-१ उ.] गौतम ! सकषायी जीवों का कथन सेन्द्रिय जीवों के समान (सू. ४४ के अनुसार) जानना चाहिए। [२] एवं जाव लोहकसाई। - [१३८-२] इसी प्रकार यावत् (क्रोधकषायी, मानकषायी, मायाकषायी), लोभकषायी जीवों के विषय में समझ लेना चाहिए। १३९. अकसाई णं भंते ! किं णाणी०? पंच नाणाई भयणाए।१३।। [१३९ प्र.] भगवन् ! अकषायी (कषायमुक्त) जीव क्या ज्ञानी होते हैं, अथवा अज्ञानी ? [१३९ उ.] गौतम ! (वे ज्ञानी होते हैं, अज्ञानी नहीं।) उनमें पांच ज्ञान भजना से पाए जाते हैं। (तेरहवाँ द्वार) १४०.[१] सवेदगा णं भंते ! ०? जहा सइंदिया (सु. ४४)। [१४०-१ प्र.] भगवन् ! सवेदक (वेदसहित) जीव ज्ञानी होते हैं अथवा अज्ञानी ? [१४०-१ उ.] गौतम ! सवेदक जीवों का कथन सेन्द्रिय जीवों के समान (सू.४४ के अनुसार) जानना चाहिए। [२] एवं इत्थिवेदगा वि। एवं पुरिसवेयगा। एवं नपुंसकवे०। [१४०-२] इसी तरह स्त्रीवेदकों, पुरुषवेदकों और नपुंसकवदेक जीवों के सम्बंध में भी कहना चाहिए।
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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