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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र (सू. ९५-१ के अनुसार) करना चाहिए। __१२३. केवलनाणसागारोवजुत्ता जहा केवलनाणलद्धिया (सु. ९६ [१])।
[१२३] केवलज्ञान-साकारोपयोगयुक्त जीवों का कथन केवलज्ञानलब्धिमान् जीवों के समान (सू. ९६-१ के अनुसार) समझना चाहिए। (अर्थात्-उनमें एकामत्र केवलज्ञान ही पाया जाता है।)
१२४. मइअण्णाणसागारोवउत्ताणं तिण्णि अण्णाणाई भयणाए। [१२४] मति-अज्ञानसाकारोपयोगयुक्त जीवों में तीन अज्ञान भजना से पाए जाते हैं। १२५. एवं सुयअण्णाणसागारोवउत्ता वि। [१२५] इसी प्रकार श्रुत-अज्ञानसाकारोपयोगयुक्त जीवों का कथन करना चाहिए। १२६. विभंगनाणसागारोवजुत्ताणं तिण्णि अण्णाणाइं नियमा। [१२६] विभंगज्ञान-साकारोपयोगयुक्त जीवों में नियमत: तीन अज्ञान पाए जाते हैं। १२७. अणागारोवउत्ता णं भंते ! जीवा किं नाणी, अण्णाणी ? पंच नाणाई, तिण्णि अण्णाणाई भयणाए। [१२७ प्र.] भगवन् ! अनाकारोपयोग वाले जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ?
[१२७ उ.] गौतम ! अनाकारोपयोगयुक्त जीव ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं। उनमें पांच ज्ञान अथवा तीन अज्ञान भजना से पाए जाते हैं।
१२८. एवं चक्खुदंसण-अचक्खुदंसणअणागारोवजुत्ता वि, नवरं चत्तारि णाणाई, तिण्णि अण्णाणाई भयणाए।
[१२८] इसी प्रकार चक्षुदर्शन और अचक्षुदर्शन अनाकारोपयोगयुक्त जीवों के विषय में समझ लेना चाहिए; किन्तु इतना विशेष है कि चार ज्ञान अथवा तीन अज्ञान भजना से होते हैं।
१२९. ओहिदसणअणागारोवजुत्ता णं पुच्छा।
गोयमा ! नाणी वि अण्णाणी वि। जे नाणी अत्थेगतिया तिन्नाणी, अत्थेगतिया चउनाणी। जे तिनाणी ते आभिणिबोहि० सुयनाणी ओहिनाणी। जे चउणाणी ते आभिणिबोहियनाणी जाव मणपज्जवनाणी। जे अन्नाणी ते नियमा तिअण्णणी, तं जहा-मइअण्णाणी सुयअण्णाणी विभंगनाणी।
[१२९ प्र.] भगवन् ! अवधिदर्शन-अनाकारोपयोगयुक्त जीव ज्ञानी होते हैं, अथवा अज्ञानी, यह