SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 311
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८० व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र (सू. ९५-१ के अनुसार) करना चाहिए। __१२३. केवलनाणसागारोवजुत्ता जहा केवलनाणलद्धिया (सु. ९६ [१])। [१२३] केवलज्ञान-साकारोपयोगयुक्त जीवों का कथन केवलज्ञानलब्धिमान् जीवों के समान (सू. ९६-१ के अनुसार) समझना चाहिए। (अर्थात्-उनमें एकामत्र केवलज्ञान ही पाया जाता है।) १२४. मइअण्णाणसागारोवउत्ताणं तिण्णि अण्णाणाई भयणाए। [१२४] मति-अज्ञानसाकारोपयोगयुक्त जीवों में तीन अज्ञान भजना से पाए जाते हैं। १२५. एवं सुयअण्णाणसागारोवउत्ता वि। [१२५] इसी प्रकार श्रुत-अज्ञानसाकारोपयोगयुक्त जीवों का कथन करना चाहिए। १२६. विभंगनाणसागारोवजुत्ताणं तिण्णि अण्णाणाइं नियमा। [१२६] विभंगज्ञान-साकारोपयोगयुक्त जीवों में नियमत: तीन अज्ञान पाए जाते हैं। १२७. अणागारोवउत्ता णं भंते ! जीवा किं नाणी, अण्णाणी ? पंच नाणाई, तिण्णि अण्णाणाई भयणाए। [१२७ प्र.] भगवन् ! अनाकारोपयोग वाले जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? [१२७ उ.] गौतम ! अनाकारोपयोगयुक्त जीव ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं। उनमें पांच ज्ञान अथवा तीन अज्ञान भजना से पाए जाते हैं। १२८. एवं चक्खुदंसण-अचक्खुदंसणअणागारोवजुत्ता वि, नवरं चत्तारि णाणाई, तिण्णि अण्णाणाई भयणाए। [१२८] इसी प्रकार चक्षुदर्शन और अचक्षुदर्शन अनाकारोपयोगयुक्त जीवों के विषय में समझ लेना चाहिए; किन्तु इतना विशेष है कि चार ज्ञान अथवा तीन अज्ञान भजना से होते हैं। १२९. ओहिदसणअणागारोवजुत्ता णं पुच्छा। गोयमा ! नाणी वि अण्णाणी वि। जे नाणी अत्थेगतिया तिन्नाणी, अत्थेगतिया चउनाणी। जे तिनाणी ते आभिणिबोहि० सुयनाणी ओहिनाणी। जे चउणाणी ते आभिणिबोहियनाणी जाव मणपज्जवनाणी। जे अन्नाणी ते नियमा तिअण्णणी, तं जहा-मइअण्णाणी सुयअण्णाणी विभंगनाणी। [१२९ प्र.] भगवन् ! अवधिदर्शन-अनाकारोपयोगयुक्त जीव ज्ञानी होते हैं, अथवा अज्ञानी, यह
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy