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________________ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 'चारित्राचारित्रलब्धि-रहित जीव, जो असंयत सम्यग्दृष्टि व ज्ञानी हैं, उनमें सम्यग्ज्ञान होने से ५ ज्ञान भजना से पाए जाते हैं, इनमें जो अज्ञानी हैं, उनमें तीन अज्ञान भजना से पाये जाते हैं। २७८ दानादि चार लब्धियों वाले जीवों में ज्ञान-अज्ञान - प्ररूपणा —– दानान्तरायकर्म के क्षय अथवा क्षयोपशम से प्राप्त होने वाली दानलब्धि से युक्त जो ज्ञानी जीव (सम्यग्दृष्टि, देशव्रती, महाव्रती एवं केवली) हैं, उनमें पांच ज्ञान भजना से पाए जाते हैं । दानलब्धि वाले जो अज्ञानी जीव हैं, उनमें तीन अज्ञान पाए जाते हैं । दान आदि लब्धिरहित जीव सिद्ध होते हैं, यद्यपि उनके दानान्तराय आदि पांचों अन्तरायकर्मों का क्षय हो चुका होता है, तथापि वहाँ दातव्य आदि पदार्थ का अभाव होने से तथा दानग्रहणकर्ता जीवों के न होने से और कृतकृत्य हो जाने के कारण किसी प्रकार का प्रयोजन न होने से उनमें दान आदि की लब्धि नहीं मानी गई है। उनमें नियम से एकमात्र केवलज्ञान होता है । अत: दानलब्धि और अलब्धि वाले जीवों की तरह लाभलब्धि, भोगलब्धि, उपभोगलब्धि और वीर्यलब्धि तथा इनकी अलब्धि वाले जीवों का कथन करना चाहिए। वीर्यलब्धि वाले जीवों में ज्ञान-अज्ञान प्ररूपणा - बालवीर्यलब्धि वाले जीव असंयत अविरत होते हैं। उनमें से जो सम्यग्दृष्टि ज्ञानी जीव हैं, उनमें तीन ज्ञान भजना से और जो मिथ्यादृष्टि अज्ञानी जीव हैं, उनमें तीन अज्ञान भजना से पाए जाते हैं। बालवीर्यलब्धि-रहित जीव सर्वविरत, देशविरत और सिद्ध होते हैं, अत: उनमें पांच ज्ञान भजना से पाए जाते हैं। पण्डितवीर्यलब्धि-सम्पन्न जीव ज्ञानी ही होते हैं, उनमें पांच ज्ञान भजना से पाए जाते हैं। मनः पर्यवज्ञान पण्डितवीर्यलब्धि वाले जीवों में ही होता है। पण्डितवीर्यलब्धि-रहित जीव असंयत, देशसंयत और सिद्ध होते हैं। इनमें से असंयत जीवों में पहले के तीन ज्ञान या तीन अज्ञान भजना से पाए जाते हैं, देशसंयत में प्रथम के तीन ज्ञान भजना से पाए जाते हैं और सिद्ध जीवों में एकमात्र केवलज्ञान ही होता है। सिद्ध जीवों में पण्डितवीर्यलब्धि नहीं होती, क्योंकि अहिंसादि धर्मकार्यों में प्रवृत्ति करना पण्डितवीर्य कहलाता है, और ऐसी प्रवृत्ति सिद्धों में नहीं होती। बाल-पण्डितवीर्यलब्धि वाले देशसंयत जीव होते हैं, उनमें प्रथम के तीन ज्ञान भजना से पाये जाते हैं। बाल-पण्डितवीर्यलब्धि-रहित जीव, असंयत, सर्वविरत और सिद्ध होते हैं, इनमें पांच ज्ञान अथवा तीन अज्ञान भजना से पाए जाते हैं। इन्द्रियलब्धि वाले जीवों में ज्ञान-अज्ञान प्ररूपणा - इन्द्रियलब्धि वाले ज्ञानी जीवों में प्रथम के चार ज्ञान भजना से होते हैं इनमें केवलज्ञान नहीं होता, क्योंकि केवलज्ञानी इन्द्रियों का उपयोग नहीं करते । इन्द्रियलब्धियुक्त अज्ञानी जीवों में तीन अज्ञान भंजना से पाए जाते हैं । इन्द्रियलब्धिरहित जीव एकमात्र केवलज्ञानी होते हैं, उनमें सिर्फ एक केवलज्ञान पाया जाता है। श्रोत्रेन्द्रियलब्धि, चक्षुरिन्द्रियलब्धि और घ्राणेन्द्रियलब्धि वाले और अलब्धि वाले जीवों का कथन इन्द्रियलब्धि और अलब्धि वाले जीवों की तरह करना चाहिए। अर्थात्— श्रोत्रेन्द्रिय आदि लब्धिरहित जो ज्ञानी जीव हैं, उनमें दो या एक ज्ञान होता है। जो ज्ञानी हैं, उनमें सास्वादनसम्यग्दृष्टि अपर्याप्त अवस्था में दो ज्ञान पाये जाते हैं, जो एक ज्ञान वाले हैं, उनमें सिर्फ केवलज्ञान होते है; क्योंकि श्रोत्रादि इन्द्रियोपयोग-रहित होने से श्रोत्रादि इन्द्रियलब्धि-रहित हैं । श्रोत्रेन्द्रियलब्धिरहित अज्ञानी जीवों में प्रथम के दो अज्ञान पाए जाते हैं । चक्षुरिन्द्रिय और घ्राणेन्द्रिय लब्धिमान् जो पंचेन्द्रिय
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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