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अष्टम शतक : उद्देशक - २
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एक ज्ञान (केवलज्ञान) वाले हैं। इनमें जो अज्ञानी हैं, वे दो या तीन अज्ञान वाले हैं । केवलज्ञानलब्धि वाले जीवों में एकमात्र केवलज्ञान ही होता है, केवलज्ञान की अलब्धिवाले जीवों में जो ज्ञानी हैं उनमें प्रथम के दो ज्ञान, या प्रथम के तीन ज्ञान, अथवा मति, श्रुत और मनः पर्यवज्ञान, या प्रथम के चार ज्ञान होते हैं; जो अज्ञानी हैं, उनमें दो या तीन अज्ञान होते हैं।
अज्ञानलब्धियुक्त जीवों में ज्ञान और अज्ञान की प्ररूपणा - अज्ञानलब्धिमान् जीवों में भजना से तीन अज्ञान (कई प्रथम के दो अज्ञान वाले और कई तीन अज्ञान वाले) होते हैं। अज्ञानलब्धिरहित जीवों भजना से ५ ज्ञान पाए जाते हैं। मति- अज्ञान और श्रुत- अज्ञान की लब्धि वाले जीवों में पूर्ववत् ३ अज्ञान भजना से पाएं जाए हैं तथा मति अज्ञान और श्रुत- अज्ञान की अलब्धि वाले जीवों में पूर्ववत् ५ ज्ञान भजना से पाए जाते हैं । विभंगज्ञान की लब्धि वाले अज्ञानी जीवों में नियमतः तीन अज्ञान होते हैं। विभंगज्ञान की अलब्धि वाले ज्ञानी जीवों में पांच ज्ञान भजना से और अज्ञानी जीवों में नियमत: प्रथम के दो अज्ञान पाए जाते हैं।
दर्शनलब्धियुक्त जीवों में ज्ञान-अज्ञान - प्ररूपणा — कोई भी जीव दर्शनलब्धि से रहित नहीं होता। दर्शन के तीन प्रकारों (सम्यक्, मिथ्या और मिश्र) में से कोई-न-कोई एक दर्शन जीव में होता ही है । सम्यग्दर्शनलब्धि वाले जीवों में ५ ज्ञान भजना से पाए जाते हैं। सम्यग्दर्शनलब्धि रहित ( मिथ्यादृष्टि या मिश्र दृष्टि) जीवों में तीन अज्ञान भजना से पाए जाते हैं। मिथ्यादर्शनलब्धि वाले जीव अज्ञानी ही होते हैं, उनमें तीन अज्ञान भजना से पाये जाते हैं। मिथ्यादर्शनलब्धि-रहित जीव या तो सम्यग्दृष्टि होंगे या उनमें तीन अज्ञान भजना से होंगे । सम्यग्मिथ्यादर्शनलब्धि और अलब्धि वाले जीवों में ज्ञान और अज्ञान की प्ररूपणा मिथ्यादर्शनलब्धि और अलब्धि जीवों की तरह समझनी चाहिए।
चारित्रलब्धियुक्त जीवों में ज्ञान-अज्ञान प्ररूपणा — चारित्रलब्धि वाले जीव ज्ञानी ही होते हैं । अत: उनमें ५ ज्ञान भजना से पाए जाते हैं, क्योंकि केवली भगवान् भी चारित्री होते हैं। चारित्र- अलब्धिवाले जीव ज्ञानी और अज्ञानी दोनों तरह के होते हैं। जो ज्ञानी हैं, उनमें भजना ४ ज्ञान होते हैं, और सिद्धभगवान् में केवलज्ञान होता है । सिद्धों में चारित्रलब्धि या अलब्धि नहीं है, वे नो- चारित्री- नोअचारित्री होते हैं । चारित्रलब्धिरहित, जो अज्ञानी हैं, उनमें तीन अज्ञान भजना से पाए जाते हैं । सामायिक आदि चार प्रकार के चारित्रलब्धियुक्त जीव ज्ञानी और छद्मस्थ ही होते हैं, इसलिए उनमें चार ज्ञान (केवलज्ञान को छोड़ कर ) भजना से पाये जाते हैं। यथाख्यातचारित्र ग्यारहवें से चौदहवें गुणस्थान तक के जीवों में होता है। इनमें से ग्यारहवें तथा बारहवें गुणस्थानकवर्ती जीव छद्मस्थ होने से उनमें आदि के ४ ज्ञान होते हैं और तेरहवें तथा चौदहवें गुणस्थानवर्ती जीव केवली होते हैं, अत: उनमें केवल ५ वां ज्ञान (केवलज्ञान) होता है। इसलिए कहा गया है कि यथाख्यातचारित्रलब्धियुक्त जीवों में ५ ज्ञान भजना से पाए जाते हैं।
चारित्राचारित्रलब्धियुक्त जीवों में ज्ञान-अज्ञान - प्ररूपणा — इस लब्धि वाले जीव सम्यग्दृष्टि ज्ञानी होते हैं, इसलिए उनमें तीन ज्ञान भजना से पाए जाते हैं, क्योंकि तीर्थंकर आदि जीव जब तक पूर्ण चारित्र ग्रहण नहीं करते, तब तक वे जन्म से लेकर दीक्षाग्रहण करने तक मति, श्रुत और अवधिज्ञान से सम्पन्न होते हैं।
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