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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [३२-१ प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ?
[३२-१ उ.] गौतम ! वे ज्ञानी नहीं हैं, अज्ञानी हैं। वे नियमत: दो अज्ञान वाले हैं; यथा—मति-अज्ञानी और श्रुत अज्ञानी।
[२] एवं जाव वणस्सइकाइया। [३२-२] इसी प्रकार वनस्पतिकायिक पर्यन्त कहना चाहिए। ३३.[१] बेइंदियाणं पुच्छा।
गोयमा ! णाणी वि, अण्णाणी वि।जे नाणी ते नियमा दुण्णाणी, तं जहा—आभिणिबोहियनाणी य सुयणाणी य। जे अण्णाणी ते नियमा दुअण्णाणी-आभिणिबोहिय-अण्णाणी य सुयअण्णाणी य।
[३३-१ प्र.] भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीव ज्ञानी भी हैं या अज्ञानी ?
[३३-१ उ.] गौतम ! द्वीन्द्रिय जीव ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं। जो ज्ञानी हैं, वे नियमत: दो ज्ञान वाले हैं, यथा-मतिज्ञानी और श्रुतज्ञानी। जो अज्ञानी हैं, नियमतः दो अज्ञान वाले हैं, यथा—मति-अज्ञानी और श्रुत-अज्ञानी।
[२] एवं तेइंदिय-चउरिंदिया वि। [३३-२] इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रय जीवों के विषय में भी कहना चाहिए। ३४. पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा।
गोयमा ! नाणि वि अण्णाणी वि। जे नाणि ते अत्थेगतिया दुण्णाणी, अत्थेगतिया तिन्नाणी। एवं तिण्णि नाणाणि तिण्णि अण्णाणि य भयणाए।
[३४ प्र.] भगवन् ! प्रश्न है कि पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ?
[३४ उ.] गौतम ! वे ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं। जो ज्ञानी हैं, उनमें से कितने ही दो ज्ञान वाले हैं और कई तीन ज्ञान वाले हैं। इस प्रकार (पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीवों के) तीन ज्ञान और तीनं अज्ञान भजना से होते हैं।
३५. मणुस्सा जहा जीवा तहेव पंच नाणाणि तिण्णि अण्णाणाणि य भयणाए।
[३५] जिस प्रकार औधिक जीवों के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार मनुष्यों में पाँच ज्ञान और तीन अज्ञान भजना से होते हैं।
३६. वाणमंतरा जहा नेरइया। [३६] वाणव्यन्तर देवों का कथन नैरयिकों के समान जानना चाहिए। ३७. जोतिसिय-वेमाणियाणं तिण्णि नाणा तिण्णि अन्नाणा नियमा। [३७] ज्योतिष्क और वैमानिक देवों में तीन ज्ञान, तीन अज्ञान नियमत: होते हैं।