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अष्टम शतक : उद्देशक-२
२५५ सुयअण्णाणी विभंगनाणी।
[२९ प्र.] भगवन् ! जीव ज्ञानी हैं या अज्ञामी हैं ?
[२९ उ.] गौतम ! जीव ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं। जो जीव ज्ञानी हैं, उनमें से कुछ जीव दो ज्ञान वाले हैं, कुछ जीव तीन ज्ञान वाले हैं, कुछ जीव चार ज्ञान वाले हैं, और कुछ जीव एक ज्ञान वाले हैं। दो ज्ञान वाले हैं, वे मतिज्ञानी और श्रुतज्ञानी होते हैं। जो तीन ज्ञान वाले हैं, वे आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी हैं, अथवा आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और मन:पर्यवज्ञानी होते हैं। जो चार ज्ञान वाले हैं, वे आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी और मनःपर्यवज्ञानी हैं। जो एक ज्ञान वाले हैं, वे नियमत: केवलज्ञानी हैं । जो जीव अज्ञानी हैं, उनमें से कुछ जीव दो अज्ञान वाले हैं, कुछ तीन अज्ञान वाले होते हैं । जो जीव दो अज्ञान वाले हैं, वे मति-अज्ञानी और श्रुत-अज्ञानी हैं; जो जीव तीन अज्ञान वाले हैं, वे मति-अज्ञानी, श्रुत-अज्ञानी और विभंगज्ञानी हैं।
३०. नेरइया णं भंते ! किं नाणी, अण्णाणी?
गोयमा ! नाणी वि अण्णणी वि। जे नाणी ते नियमा तिन्नाणी, तं जहा—आभिणिबोहि० सुयनाणी ओहिनाणी। जे अण्णाणी ते अत्थेगतिया दुअण्णाणी, अत्थेगतिया तिअण्णाणी। एवं तिणि अण्णाण्णाणि भयणाए।
[३० प्र.] भगवन् ! नैरयिक जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ?
[३० उ.] गौतम ! नैरयिक जीव ज्ञानी भी हैं, और अज्ञानी भी हैं। उनमें जो ज्ञानी हैं, वे नियमत: तीन ज्ञान वाले हैं, यथा—आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी। जो अज्ञानी हैं, उनमें से कुछ दो अज्ञान वाले हैं, और कुछ तीन अज्ञान वाले हैं । इस प्रकार तीन अज्ञान भजना (विकल्प) से होते हैं।
३१.[१] असुरकुमारा णं भंते किं नाणी अण्णाणी ? जहेव नेरइया तहेव तिण्णि नाणाणि नियमा, तिण्णि य अण्णाणाणि भयणाए। [३१-१ प्र.] भगवन् ! असुरकुमार ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ?
[३१-१ उ.] गौतम ! जैसे नैरयिक का कथन किया गया है, उसी प्रकार असुरकुमारों का भी कथन करना चाहिए। अर्थात् जो ज्ञानी हैं, वे नियमत: तीन ज्ञान वाले हैं और जो अज्ञानी हैं, वे भजना (विकल्प) से तीन अज्ञान वाले हैं।
[२] एवं जाव थणियकुमारा। [३१-२] इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक कहना चाहिए। ३२. [१] पुढविक्कइया णं भंते ! किं नाणी अण्णाणी ? गोयमा ! नो नाणी, अण्णाणी-मतिअण्णाणी य, सुयअण्णाणी य।