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२७५, लब्धि के मुख्य भेद २७५, ज्ञानलब्धि के भेद २७५, दर्शनलब्धि के तीन भेद : उनका स्वरूप २७५, चरित्रलब्धि : स्वरूप और प्रकार २७५, चारित्रारित्रलब्धि का अर्थ २७६, दानादि लब्धियाँ : एक एक प्रकार की २७६, ज्ञानलब्धियुक्त जीवों में ज्ञान और अज्ञान की प्ररूपणा २७६, अज्ञानलब्धियुक्त जीवों में ज्ञान और अज्ञान की प्ररूपणा २७७, दर्शनलब्धियुक्त जीवों में ज्ञान-अज्ञान-प्ररूपणा २७७, चारित्रलब्धियुक्त जीवों में ज्ञान-अज्ञान-प्ररूपणा २७७, चारित्राचारित्रलब्धियुक्त जीवों में ज्ञान-अज्ञान-प्ररूपणा २७७, दानादि चार लब्धियों वाले जीवों में ज्ञान-अज्ञान-प्ररूपणा २७८, वीर्यलब्धि वाले जीवों में ज्ञान-अज्ञान-प्ररूपणा २७८, इन्द्रियलब्धि बाले जीवों में ज्ञान-अज्ञान-प्ररूपणा २७८, दसवें उपयोगद्वार से लेकर पन्द्रहवें आहारकद्वार तक के जीवों में ज्ञान और अज्ञान की प्ररूपणा २७९, उपयोगद्वार २८३, योगद्वार २८४, लेश्याद्वार २८४, कषायद्वार २८४, वेद द्वार २८४, आहारकद्वार २८४, सोलहवें विषयद्वार के माध्यम से द्रव्यादि की अपेक्षा ज्ञान और अज्ञान का निरूपण २८५, ज्ञानों का विषय २८७, तीन अज्ञानों का विषय २८९, ज्ञानी और अज्ञानी के स्थितिकाल, अन्तर
और अल्पबहुत्व का निरूपण २८९, ज्ञानी का ज्ञानी के रूप में अवस्थितिकाल २९०, त्रिविध अज्ञानियों का तद्रूप अज्ञानी के रूप में अवस्थितिकाल २९०, पांच ज्ञानों और तीन अज्ञानों का परस्पर अन्तरकाल २९०, पांच अज्ञानी और तीन अज्ञानी जीवों का अल्प बहुत्व २९०, ज्ञानी और अज्ञानी जीवों का परस्पर सम्मिलित अल्पबहुत्व २९१, बीसवें पर्यायद्वार के माध्यम से ज्ञान और अज्ञान के पर्यायों की प्ररूपणा २९१, ज्ञान और अज्ञान के पर्यायों का अल्पबहुत्व २९३, पर्याय : स्वरूप, प्रकार एवं परस्पर अल्पबहुत्व २९३, पर्यायों के अल्पबहुत्व की समीक्षा २९४ । तृतीय उद्देशक-वृक्ष (सूत्र १-२)
२९५-२९९ __ संख्यातजीविक, असंख्यातजीविक और अनन्तजीवतिक वृक्षों का निरूपण २९५, संख्यातजीविक, असंख्यात जीविक और अनन्तजीविक का विश्लेषण २९६, छिन्न कछुए आदि के टुकड़ों के बीच का जीवप्रदेश स्पृष्ट और शस्त्रादि के प्रभाव से रहित २९७, रत्नप्रभादि पृथ्वियों के चरमत्व-अचरमत्व का निरूपण २९८, चरम-अचरम-परिभाषा २९९, चरमादि छह प्रश्नोत्तरों का आशय २९९ । चतुर्थ उद्देशक-क्रिया (सूत्र १-१५)
३००-३०१ क्रियाएँ और उनसे सम्बन्धित भेद-प्रभेदों आदि का निर्देश ३००, क्रिया की परिभाषा ३००, कायिकी आदि क्रियाओं का स्वरूप और प्रकार ३०० । पंचम उद्देशक-आजीव (सूत्र १-२९)
३०२-३१२ सामायिकादि साधना में उपविष्ट श्रावक का सामान या स्त्री आदि परकीय हो जाने पर भी उसके द्वारा स्वमत्ववश अन्वेषण ३०२, सामायिकादि साधना में परकीय पदार्थ स्वकीय क्यों ? ३०४, श्रावक के प्राणातिपात आदि पापों के प्रतिक्रमण-संवर-प्रत्याख्यान-सम्बन्धी विस्तृत भंगों की प्ररूपणा ३०४, श्रावक को प्रतिक्रमण, संवर और प्रत्याख्यान करने के लिए प्रत्येक के ४९ भंग ३०८, आजीविकोपासकों के सिद्धान्त, नाम, आचार-विचार और श्रमणोपासकों की उनसे विशेषता ३०९, आजीविकोपासकों का आचार-विचार ३११, श्रमणोपासकों की विशेषता ३११, कर्मादान और उसके प्रकारों की व्याख्या ३११, देवलोकों के चार प्रकार ३१२।
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