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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
भविस्सति । तए णं ते मणुया सूरोग्गमणमुहुत्तंसि य सूरत्थमणमुहुत्तंसि य बिलेहिंतो निद्धाहिंति, बिलेहिंतो निद्धाइत्ता मच्छ-कच्छभे थलाई गाहेहिंति, मच्छ- कच्छभे थलाई गाहेत्ता सीतातवतत्तएहिं मच्छ कच्छएहिं एक्कवीसं वाससहस्साइं वित्तिं कप्पेमाणा विहरिस्संति ।
[ ३४ प्र.] भगवन् ! (उस दु:षमदु:षमकाल के) मनुष्य किस प्रकार का आहार करेंगे ?
[ ३४ उ.] गौतम ! उस काल और उस समय में गंगा और सिन्धु महानिदयाँ रथ के मार्ग प्रमाण विस्तार वाली होंगी। उनमें अक्षस्रोतप्रमाण (रथ की धुरी के प्रवेश करने के छिद्र जितने भाग में आ सके उतना ) पानी बहेगा। वह पानी भी उनके मत्स्य, कछुए आदि से भरा होगा और उसमें भी पानी बहुत नहीं होगा । वे बिलवासी मनुष्य सूर्योदय के समय एक मुहूर्त और सूर्यास्त के समय एक मुहूर्त (अपने-अपने) बिलों से बाहर निकलेंगे। बिलों से बाहर निकल कर वे गंगा और सिन्धु नदियों में से मछलियों और कछुओं आदि को पकड़ कर जमीन में गाड़ेंगे। इस प्रकार गाड़े हुए मत्स्य- कच्छपादि (रात की) ठंड और (दिन की ) धूप में सिक जाएँगे। (तब शाम को गाड़े हुए मत्स्य आदि को सुबह और सुबह के गाड़े हुए मत्स्य आदि को शाम को निकाल कर खाएँगे।) इस प्रकार शीत और आतप से पके हुए मत्स्य-कच्छापादि से इक्कीस हजार वर्ष तक जीविका चलाते हुए (जीवननिर्वाह करते हुए) वे विहरण (जीवनयापन) करेंगे।
३५. ते णं भंते ! मणुया निस्सीला णिग्गुणा निम्मेरा निप्पच्चक्खाणपोसहोवासा उस्सन्नं मंसाहारा मच्छाहारा खोद्दाहारा कुणिमाहारा कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छहिंति ? कहिं उववज्जिहिंति ?
गोयमा ! ओसन्नं नरग-तिरिक्ख - जोणिएसु उववज्जिर्हिति ।
[ ३५ प्र.] भगवन् ! वे (उस समय के) शीलरहित, गुणरहित, मर्यादाहीन, प्रत्याख्यान, (त्याग-नियम) और पौषधोपवास से रहित, प्राय: मांसाहारी, क्षुद्राहारी (अथवा मधु का आहार करने वाले अथवा भूमि खोद कर कन्दमूलादि का आहार करने वाले) एवं कुणिमाहारी (मृतक का मांस खाने वाले) मनुष्य मृत्यु के समय मर कर (काल) कर कहाँ जाएँगे, कहाँ उत्पन्न होंगे ?
[ ३५ उ.] गौतम ! वे (पूर्वोक्त प्रकार के) मनुष्य मर कर प्रायः नरक एवं तिर्यञ्च - योनियों में उत्पन्न
होंगे।
३६. ते णं भंते ! सीहा वग्घा विगा दीविया अच्छा तरच्छा परस्सरा णिस्सीला तहेव जाव कहिं उववज्जिहिंति ?
गोयमा ! ओसन्नं नरग-तिरिक्खजोणिएसु उववज्जिहिंति ।
[३६ प्र.] भगवन् ! (उस काल और उस समय के) नि:शील यावत् कुणिमाहारी सिंह, व्याघ्र, वृ (भेड़िये), द्वीपिक (चीते अथवा गैंडे), रीछ ( भालू), तरक्ष (जरख) और शरभ (गेंडा) आदि ( हिंस्र पशु) मृत्यु के समय मर कर कहाँ जाएँगे, कहाँ उत्पन्न होंगे ?