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________________ १६० व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र निरुच्छाहा सत्तपरिवज्जिया विगतचेट्ठनट्ठतेया अभिक्खणं सीय- उण्ह - खर- फरुस - वातविज्झडियमलिणपंसुरउग्गुंडितंगमंगा बहुकोह - माण- माया बहुलोभा असुहदुक्खभागी ओसन्न धम्मसण्णासम्मत्तपरिब्भट्ठा उक्कोसेणं रयणिपमाणमेत्ता सोलसवीसतिवासपरमाउसा पुत्तणत्तुपरियालपणयबहुला गंगा-सिंधुओ महानदीओ वेयड्डुं च पव्वयं निस्साए बहुत्तरि णिगोदा बीयंबीयामेत्ता बिलवासिणोभविस्संति । [३३ प्र.] भगवन् ! उस समय (दुःषमदुःषम नामक छठे आरे) में भारतवर्ष के मनुष्यों का आकार या आचार और भावों का आविर्भाव (स्वरूप) कैसा होगा ? [ ३३ उ.] गौतम ! उस समय में भारतवर्ष के मनुष्य अति कुरुप, कुवर्ण, कुगंध, कुरस और कुस्पर्श से युक्त, अनिष्ट, अकान्त (कान्तिहीन या अप्रिय) यावत् अमनोगम, हीनस्वर वाले, दीनस्वर वाले, अनिष्टस्वर वाले यावत् अमनाम स्वर वाले, अनादेय और अप्रीतियुक्त वचन वाले, निर्लज्ज, कूट- कपट, कलह, वध (मारपीट), बंध और वैरविरोध में रत, मर्यादा का उल्लंघन करने में प्रधान (प्रमुख), अकार्य करने में नित्य उद्यत, गुरुजनों (माता-पिता आदि पूज्यजनों) के आदेशपालन और विनय से रहित, विकलरूप (बेडौल सूरत शक्ल) वाले, बढ़े हुए नख, केश, दाढ़ी, मूंछ और रोम वाले, कालेकलूटे, अत्यन्त कठोर श्यामवर्ण के बिखरे हुए बालों वाले, पीले और सफेद केशों वाले, बहुत-सी नसों (स्नायुओं) से शरीर बंधा हुआ होने से दुर्दर्शनीय रूप वाले, संकुचित (सिकुडे हुए) और वलीतरंगों (झूर्रियों) से परिवेष्टित, टेढ़े-मेढ़े अंगोपांग वाले, इसलिए जरापरिणत वृद्धपुरुषों के समान प्रविरल (थोड़े-से) टूटे और सड़े हुए दांतों वाले, उद्भट घट के समान भयंकर मुख वाले, विषम नेत्रों वाले, टेढ़ी नाक वाले तथा टेढ़े-मेढ़े एवं झुर्रियों से विकृत हुए भयंकर मुख वाले, एक प्रकार की भयंकर खुजली (पांव =पामा) वाले, कठोर एवं तीक्ष्ण नखों से खुजलाने के कारण विकृत बने हुए, दाद, एक प्रकार के कोढ़ (किडिभ), सिध्म (एक प्रकार के भयंकर कोढ़) वाले, फटी हुई कठोर चमड़ी वाले, विचित्र अंग वाले, ऊँट आदि-सी गति (चाल) वाले, (बुरी आकृति वाले), शरीर के जोड़ों के विषम बंधन वाले, ऊँची-नीची विषम हड्डियों एवं पसलियों से युक्त, कुगठनयुक्त, कुसंहनन वाले, कुप्रमाणयुक्त, विषम संस्थानयुक्त, कुरुप, कुस्थान में बढ़े हुए शरीर वाले, कुशय्या वाले ( खराब स्थान पर शयन करने वाले), कुभोजन करने वाले, विविध व्याधियों से पीड़ित, स्खलित गति (लड़खड़ाती चाल) वाले, उत्साहरहित, सत्त्वरहित, विकृत चेष्टा वाले, तेजोहीन, बारबार शीत, उष्ण, तीक्ष्ण और कठोर वात से व्याप्त (संत्रस्त), रज आदि से मलिन अंग वाले, अत्यन्त क्रोध, मान, माया और लोभ से युक्त, अशुभ दुःख के भागी, धर्मसंज्ञा और सम्यक्त्व से परिभ्रष्ट होंगे। उनकी अवगाहना उत्कृष्ट एक रनिप्रमाण (एक मुंड हाथ भर) होगी। उनका आयुष्य (प्रायः) सोलह वर्ष का और अधिक-से-अधिक बीस वर्ष का (परमायुष्य) होगा। वे बहुत से पुत्रपौत्रादि परिवार वाले होंगे और उनका अत्यन्त स्नेह ( ममत्व या मोहयुक्त प्रणय) होगा। इनके ७२ कुटुम्ब (निगोद) बीजभूत (आगामी मनुष्यजाति लिए बीजरूप) तथा बीजमात्र होंगे। ये गंगा और सिन्धु महानदियों के बिलों में और वैताढ्य पर्वत की गुफाओं का आश्रय लेकर निवास करेंगे।
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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