SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 190
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्तम शतक : उद्देशक- ६ १५९ हो कर तीक्ष्ण धाराओं के साथ गिरते हुए प्रचुर वर्षा बरसाएँगे; जिससे भारतवर्ष के ग्राम, आकर (खान), नगर, खेड़े, कर्बट, मडम्ब, द्रोणमुख (बन्दरगाह), पट्टण (व्यापारिक मंडियों) और आश्रम में रहने वाले जनसमूह, चतुष्पद (चौपाये जानवर), खग (आकाश-चारी पक्षीगण ), ग्रामों और जंगलों में संचार में रत त्रसप्राणी तथा अनेक प्रकार के वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लताएँ, बेलें, घास, दूब, पर्व्वक (गन्ने आदि), हरियाली, शाली आदि धान्य, प्रवाल और अंकुर आदि तृणवनस्पतियाँ, ये सब विनष्ट हो जाएँगी। वैताद्यपर्वत को छोड़ कर शेष सभी पर्वत, छोटे पहाड़, टीले डूंगर, स्थल, रेगिस्तान बंजर भूमि ( भाठा-प्रदेश) आदि सबका विनाश हो जायगा । गंगा और सिन्धु इन दो नदियों को छोड़कर शेष नदियाँ, पानी के झरने, गड्ढे (सरोवर, झील आदि), (नष्ट हो जाएँगे) दुर्मम और विषम (ऊँची-नीची) भूमि में रहे हुए सब स्थल समतल क्षेत्र (सपाट मैदान) हो जाएँगे। ३२. तीसे णं भंते ! समाए भरहस्स वासस्स भूमीए केरिसए आयारभावपडोयारे भविस्सति ? गोयमा ! भूमी भविस्सति इंगालभूया मुम्मुरभूया छारियभूया वेल्लयभूया तत्तसमाजाइभूया धूलिबहुला रेणुबहुला पंकबहुला पणगबहुला चलणिबहुला, बहूणं धरणिगोयराणं सत्ताणं दुनिक्कमा यावि भविस्सति । [ ३२ प्र.] भगवन् ! उस समय भारतवर्ष की भूमि का आकार और भावों का आविर्भाव (स्वरूप) किस प्रकार का होगा। [ ३२ उ.] गौतम ! उस समय इस भरत क्षेत्र की भूमि अंगारभूत (अंगारों के समान), मुर्मुरभूत (गोबर के उपलों की अग्नि के समान), भस्मीभूत (गर्म राख के समान), तपे हुए लोहे के कड़ाह के समान, तप्तप्राय अग्नि के समान, बहुत धूल वाली, बहुत रज वाली, बहुत कीचड़ वाली बहुत शैवाल (अथवा पांच रंग की काई) वाली, चलने जितने बहुत कीचड़ वाली होगी, जिस पर पृथ्वीस्थिति जीवों का चलना बड़ा ही दुष्कर हो जाएगा। ३३. तीसे णं भंते ! समाए भारहे वासे मणुयाणं केरिसए आयारभावपडोयारे भविस्सति ? गोयमा ! मणुया भविस्संति दुरूवा दुव्वण्णा दुगंधा दूरसा दूफासा, अणिट्ठा अकंता जाव अमणामा, हीणस्सरा दीणस्सरा अणिट्ठस्सरा जाव अमणामस्सरा, अणादिज्जवयण-पच्चायाता निल्लज्जा कूड-कबड - कलह - बह-बंध - वेर - निरया मज्जादातिक्कमप्पहाणा अकज्जनिच्चुज्जता गुरुनियोग-विणरहिता य विकलरूवा परूढनह-केस-मंसुरोमा काला खरफरुसझामवण्ण फुट्टसिरा कविलपलियकेसा बहुण्हारूसंपिणद्धदुद्दंसणिज्जरूवा संकुडियवलीतरंगपरिवेढियंगमंगा जरापरिणत व्व थेरगनरा पविरलपरिसडियदंतसेढी उब्भडघडमुहा विसमनयणा वंकनासा वंकवलीविगतभेसणमुहा कच्छूकसराभिभूता खरतिक्खनक्खकंडूइय- विक्खयतणू दुद्द-किडिभ-सिज्झफुडियफरुसच्छवी चित्तलंगा टोलगति-विसम-संधिबंधणउक्कुडुअट्ठिगविभत्तदुब्बलाकुसंघयणकुप्पमाणकुसंठिता कुरूवा कुट्ठाणासणाकुसेज्जकुभोइणो असुइणो अणेगवाहिपरिपीलियंगमंगा खलंतिविब्भलगती
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy