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________________ द्वितीय उद्देशक- विरति (सूत्र १-३८ ) १२४-१३६ सुप्रत्याख्यानी और दुष्प्रत्याखानी का स्वरूप १२४, सुप्रत्याख्यान और दुष्प्रत्याख्यान का रहस्य १२५, प्रत्याख्यान के भेद-प्रभेदों का निरूपण १२५, प्रत्याख्यान की परिभाषाएँ १२७, दशविध सर्वोत्तरगुणप्रत्याख्यान का स्वरूप १२७, अपश्चिम मारणान्तिक संल्लेखना जोषणा - आराधनता की व्याख्या १२८, जीव और चौवीस दण्डकों में मूलगुण-उत्तरगुण प्रत्याख्यानी - अप्रत्याख्यानी की वक्तव्यता १२९, मूलोत्तरगुणप्रत्याख्यानीअप्रत्याख्यानी जीव, पंचेन्द्रियतिर्यंचों और मनुष्यों में अल्पबहुत्व १३०, सर्वतः और देशत: मूलोत्तरगुणप्रत्याख्यानी और अप्रत्याख्यानी का जीवों तथा चौवीस दण्डकों में अस्तित्व और अल्पबहुत्व १३१, जीवों तथा चौवीस दण्डों में संयत आदि तथा प्रत्याख्यानी आदि के अस्तित्व एवं अल्पबहुत्व की प्ररूपणा १३३, जीवों की शाश्वतता - अशाश्वतता का अनेकान्तशैली से निरूपण १३५ । तृतीय उद्देशक- स्थावर (सूत्र १-२४ ) १३७-१४६ वनस्पतिकायिक जीवों के सर्वाल्पाहार काल एवं सर्व महाकाल की वक्तव्यता १३७, प्रावृट और वर्षा ऋतु में वनस्पतिकायिक सर्वमहाहारी क्यों ? १३८, ग्रीष्मऋतु में सर्वाल्पाहारी होते हुए भी वनस्पतियाँ पत्रितपुष्पित क्यों ? १३८, वनस्पतिकायिक मूल जीवादि से स्पृष्ट मूलादि के आहार के सम्बंध में सयुक्तिक समाधान १३८, वृक्षादि रूप वनस्पति के दस प्रकार १३९, मूलादि जीवों से व्याप्त मूलादि द्वारा आहारग्रहण १३९, आलू, मूला आदि वनस्पतियों के अनन्त जीवत्व और विभिन्न जीवत्व की प्ररूपणा १३९, 'अनन्त जीवा विविहसत्ता' की व्याख्या १३९, चौवीस दण्डकों में लेश्या की अपेक्षा अल्पकर्मत्व और महाकर्मत्व की प्ररूपणा १४०, सापेक्ष कथन का आशय १४१, ज्योतिष्क दण्डक में निषेध का कारण १४१, चौवीस दण्डकवर्ती जीवों में वेदना और निर्जरा के तथा इन दोनों के समय में पृथक्त्व का निरूपण १४२, वेदना और निर्जरा की व्याख्या के अनुसार दोनों के पृथक्त्व की सिद्धि १४५, चौवीस दण्डकवर्ती जीवों की शाश्वतता- अशाश्वतता का निरूपण १४६, अव्युच्छित्तिनयार्थता व्युच्छित्तिनयार्थता का अर्थ १४६ । चतुर्थ उद्देशक - जीव (सूत्र १-२ ) १४७ - १४८ षड्विध संसारसमापन्नक जीवों के सम्बंध में वक्तव्यता १४७, षड्विध संसारसमापन्नक जीवों के सम्बंध में जीवाभिगमसूत्रोक्त तथ्य १४८ । पंचम उद्देशक- पक्षी (सूत्र १-२ ) १४९ - १५० खेचर-पंचेन्द्रिय जीवों के योनिसंग्रह आदि तथ्यों का अतिदेशपूर्वक निरूपण १४९, खेचर- पंचेन्द्रिय aai haiनिसंग्रह के प्रकार १५०, जीवाभिगमोक्त तथ्य १५० । छठा उद्देशक- आयु (सूत्र १ - ३६ ) १५१-१६३ चौवीस दण्डकवर्ती जीवों के आयुष्यबंध और आयुष्यवेदन के सम्बंध में प्ररूपणा १५१, चौबीस दण्डकवर्ती जीवों के महावेदना- अल्पवेदना के सम्बंध में प्ररूपणा १५२, चौवीस दण्डकवर्ती जीवों में अनाभोग निर्वर्तित आयुष्यबंध की प्ररूपणा १५४, आभागनिर्वर्तित और अनाभोगनिर्वर्तित आयुष्य १५४, समस्त जीवों के कर्कश-अकर्कश वेदनीयकर्मबंध का हेतुपूर्वक निरूपण १५४, कर्कशवेदनीय और अकर्कशवेदनीय कर्मबंध [ १६ ]
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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