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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र १८.[१] से नूणं भंते ! जं वेदिस्संति तं निजरिस्संति ? जं निजरिस्संति तं वेदिस्संति ? गोयमा ! णो इणढे समढे।
[१८-१ प्र.] भगवन् ! क्या वास्तव में, जिस कर्म का वेदन करेंगे, उसकी निर्जरा करेंगे, और जिस कर्म की निर्जरा करेंगे, उसका वेदन करेंगे? ।
[१८-१ प्र.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। [२] से केणढेणं जाव ‘णो तं वेदिस्संति ?'
गोयमा ! कम्मं वेदिस्संति, नोकम्मं निजरिस्संति। से तेणद्वेणं जाव नो तं निजरि (वेदि) स्संति।
[१८-२ प्र.] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं कि यावत् उसका वेदन नहीं करेंगे?
[१८-२ उ.] गौतम ! कर्म का वेदन करेंगे, नोकर्म की निर्जरा करेंगे। इस कारण से, हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि जिसका वेदन करेंगे, उसकी निर्जरा नहीं करेंगे, और जिसकी निर्जरा करेंगे, उसका वेदन नहीं करेंगे।
१९. एवं नेरतिया वि जाव वैमाणिया।
[१९] इसी तरह नैरयिकों के विषय में जान लेना चाहिए। वैमानिकपर्यन्त चौबीस ही दण्डकों में इसी तरह कहना चाहिए।
२०.[१] से णूणं भंते ! जे वेदणासमए से निजरासमए, जे निजरासमए से वेदणासमए ? गोयमा ! नो इणढे समढे।
[२०-१ प्र.] भगवन् ! जो वेदना का समय है, क्या वह निर्जरा का समय है और जो निर्जरा का समय है, वह वेदना का समय है ?
[२०-१ उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
[२] से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चति 'जे वेदणासमए न से णिज्जरासमए, जे निजरासमए न से वेदणासमए' ?
गोयमा ! जं समयं वेदेति नो तं समयं निजरेंति, जं समयं निजरेंति नो तं समयं वेदेति; अन्नम्मि समए वेदेति, अन्नम्मि समए निजरेंति; अन्ने से वेदणासमए, अन्ने से निजरासमए। से तेणढेणं जाव न से वेदणासमए।
[२०-२ प्र.] भगवन् ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि जो वेदना का समय है, वह निर्जरा का समय नहीं है और जो निर्जरा का समय है, वह वेदना का समय नहीं है ?
. [२०-२ उ.] गौतम ! जिस समय में वेदते हैं, उस समय निर्जरा नहीं करते और जिस समय निर्जरा करते हैं, उस समय वेदन नहीं करते। अन्य समय में वेदन करते हैं और अन्य समय में निर्जरा करते हैं। वेदना का