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________________ सप्तम शतक : उद्देशक- ३ णो इट्ठे समट्ठे । [१३-१ प्र.] भगवन् ! जिन कर्मों का वेदन कर (भोग) लिया, क्या उनको निर्जीर्ण कर लिया और जिन कर्मों को निर्जीर्ण कर लिया, क्या उनका वेदन कर लिया ? [१३ - १ उ.] गौतम ! यह बात (अर्थ) समर्थ (शक्य) नहीं है। [ २ ] से केणट्ठेणं भंते ! एवं वुच्चति 'जं वेदेंसु नो तं निज्जरेंसु, जं निज्जरेंसु नो तं वेदेंसु' ? गोयमा ! कम्मं वेदेंसु, नोकम्मं निज्जरिंसु, से तेणट्ठेणं गोयमा ! जाव नो तं वेदेंसु । [१३-२ प्र.] भगवन् ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं कि जिन कर्मों का वेदन कर लिया, उनको निर्जीण नहीं किया और जिन कर्मों को निर्जीण कर लिया, उनका वेदन नहीं किया ? १४३ [१३-२ उ.] गौतम ! वेदन किया गया कर्मों का, किन्तु निर्जीण किया गया है— नोकर्मों को; इस कारण से हे गौतम! मैंने कहा कि यावत् 'उनका वेदन नहीं किया। १४. नेरतिया णं भंते ! जं वेदेंसु तं निज्जर्रिसु ? एवं नेरइया वि। [१४ प्र.] भगवन् ! नैरयिक जीवों ने जिस कर्म को वेदन कर लिया, क्या उसे निर्जीण कर लिया ? [ १४ उ.] पहले कहे अनुसार नैरयिकों के विषय में भी जान लेना चाहिए। १५. एवं जाव वेमाणिया । [१५] इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त चौबीस ही दण्डक में कथन करना चाहिए। १६. [ १ ] से नूणं भंते ! जं वेदेति तं निज्जरिंति, जं निज्जरेंति तं वेदेंति ? गोयमा ! नो इणट्ठे समट्ठे । [१६-१ प्र.] भगवन् ! क्या वास्तव में जिस कर्म को वेदते हैं, उसकी निर्जरा करते हैं और जिसकी निर्जरा करते हैं, उसको वेदते हैं ? [१६-१ उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। [ २ ] से केणट्ठेणं भंते ! एवं वुच्चति जाव 'नो तं वेदेंति' ? गोतमा ! कम्मं वेदेंति, नोकम्मं निज्जरेंति । से तेणट्ठेणं गोयमा ! जाव नो तं वेदंति । [१६-२ प्र.] भगवन् ! यह आप किस कारण से कहते हैं कि जिसको वेदते हैं, उसकी निर्जरा नहीं करते और जिसकी निर्जरा करते हैं, उसको वेदते नहीं हैं ? [१६-२ उ.] गौतम ! कर्म को वेदते हैं और नोकर्म को निर्जीर्ण करते हैं । इस कारण से हे गौतम ! मैं कहता हूँ कि यावत् जिसको निर्जीर्ण करते है, उसका वेदन नहीं करते । १७. एवं नेरइया वि जाव वेमाणिया । .[१७] इसी तरह नैरयिकों के विषय में जानना चाहिए। वैमानिकों पर्यन्त चौवीस ही दण्डकों में इसी तरह कहना चाहिए।
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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