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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र २९. जीवा णं भंते ! किं पच्चक्खाणी? अपच्चक्खाणी? पच्चक्खाणापच्चक्खाणी? गोयमा ! जीवा पच्चक्खाणी वि, एवं तिण्णि वि। [२९ प्र.] भगवन् ! क्या जीव प्रत्याख्यानी हैं, अप्रत्याख्यानी हैं, अथवा प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी हैं ?
[२९ उ.] गौतम ! जीव प्रत्याख्यानी भी हैं, अप्रत्याख्यानी भी हैं और प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी भी हैं। अर्थात् तीनों प्रकार के हैं।
३०. एवं मणुस्साण वि। [३०] इसी प्रकार मनुष्य भी तीनों ही प्रकार के हैं।
३१. पंचिंदियतिरिक्खजोणिया आदिल्लविरहिया। __[३१] पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीव प्रारम्भ के विकल्प से रहित हैं, (अर्थात् वे प्रत्याख्यानी नहीं है), किन्तु अप्रत्याख्यानी हैं या प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी हैं।
३२. सेसा सव्वे अपच्चक्खाणी जाव वेमाणिया। [३२] शेष सभी जीव यावत् वैमानिक तक अप्रत्याख्यानी हैं। ३३. एतेसि णं भंते ! जीवाणं पच्चक्खाणीणं जाव विसेसाहिया वा ?
गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा पच्चक्खाणी, पच्चक्खाणापच्चक्खाणी असंखेजगुणा, अपच्चक्खाणी अणंतगुणा।
[३३ प्र.] भगवन् ! इन प्रत्याख्यानी आदि जीवों में कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ?
[३३ उ.] गौतम ! सबसे अल्प जीव प्रत्याख्यानी हैं, उनसे प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी असंख्येयगुणे हैं और उनसे अप्रत्याख्यानी अनन्तगुणे हैं।
३४. पंचेंदियतिरिक्खजोणिया सव्वत्थोवा पच्चक्खाणापच्चक्खाणी अपच्चक्खाणी असंखेजगुणा।
[३४] पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च जीवों में प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी जीव सबसे थोड़े हैं, और उनसे असंख्यातगुणे अप्रत्याख्यानी हैं।
३५. मणुस्सा सव्वत्थोवा पच्चक्खाणी, पच्चक्खाणापच्चक्खाणी संखेजगुणा, अपच्चक्खणी असंखेजगुणा।
[३५] मनुष्यों में प्रत्याख्यानी मनुष्य सबसे थोड़े हैं, उनसे संख्येयगुणे प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी हैं और उनसे भी असंख्येयगुणे अप्रत्याख्यानी हैं।
विवेचन—संयत आदि तथा प्रत्याख्यानी आदि के जीवों तथा चौवीस दण्डकों में अस्तित्व एवं