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________________ सप्तम शतक : उद्देशक-२ १३५ अल्पबहुत्व की प्ररूपणा–प्रस्तुत आठ सूत्रों (सू. २८ से ३५ तक) में जीवों तथा चौबीस दण्डकों में संयतअसंयत-संयतासंयत तथा प्रत्याख्यानी-अप्रत्याख्यानी-प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी के अस्तित्व एवं अल्पबहुत्व का निरूपण किया गया है। जीवों की शाश्वतता-अशाश्वतता का अनेकान्तशैली से निरूपण ३६.[१] जीवा णं भंते ! किं सासता? असासता? गोयमा ! जीवा सिय सासता, सिय असासता। [३६-१ प्र.] भगवन् ! क्या जीव शाश्वत् हैं या अशाश्वत हैं ? [३६-१ उ.] गौतम ! जीव कथंचित् शाश्वत हैं और कथंचित् अशाश्वत हैं। [२] से केणद्वेणं भंते ! एवं वुच्चई 'जीवा सिय सासता, सिय असासता' ? गोयमा ! दव्वट्ठयाए सासता, भावट्ठयाए असासता।से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चई जाव सिय असासता। [३६-२ प्र.] भगवन् ! किस कारण से कहा जाता है कि जीव कथंचित् शाश्वत हैं, कथंचित् अशाश्वत [३६-२ उ.] गौतम ! द्रव्य की दृष्टि से जीव शाश्वत हैं और भाव (पर्याय) की दृष्टि से जीव अशाश्वत हैं। हे गौतम ! इस कारण ऐसा कहा गया है कि जीव कथंचित् शाश्वत हैं, कथंचित् अशाश्वत हैं। ३७. नेरइया णं भंते ! कि सासता ? असासता ? एवं जहा जीवा तहा नेरइया वि। [३७ प्र.] भगवन् ! क्या नैरयिक जीव शाश्वत हैं या अशाश्वत हैं ? ___ [३७ उ.] जिस प्रकार (औधिक) जीवों का कथन किया गया, उसी प्रकार नैरयिकों का कथन करना चाहिए। ३८. एवं जाव वेमाणिया जाव सिय असासता। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति०। ॥सत्तम सए : वितिओ उद्देसओ समत्तो॥ [३८] इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त चौबीस ही दण्डकों के विषय में कथन करना चाहिए कि वे जीव कथंचित् शाश्वत हैं, कथंचित् अशाश्वत हैं। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है'; यों कहकर यावत् गौतम स्वामी विचरने लगे।
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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