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________________ सप्तम शतक : उद्देशक - १ श्रमण या माहन को आहार द्वारा प्रतिलाभित करने वाले श्रमणोपासक को लाभ ९. समणोवासए णं भंते ! तहारूवं समणं वा माहणं वा फासुएणं एसणिज्जेणं असण-पाणखाइम-साइमेणं पडिलाभ्रमाणे किं लभति ? ११३ गोयमा ! समणोवासए णं तहारूवं समणं वा माहणं वा जाव पडिलाभेमाणे तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा समाहिं उप्पाएति, समाहिकारए णं तमेव समाहिं पडिलभति । [९ प्र.] भगवन् ! तथारूप (उत्तम) श्रमण और माहन को प्रासुक (अचित्त), एषणीय ( भिक्षा में लगने वाले दोषों से रहित) अशन, पान, खादिम और स्वादिम (चतुर्विध आहार) द्वारा प्रतिलाभित करते (बहराते-विधिपूर्वक देते) हुए श्रमणोपासक को क्या लाभ होता है ? [९ उ.] गौतम ! तथारूप श्रमण या माहन को यावत् प्रतिलाभित करता हुआ श्रमणोपासक तथारूप श्रमण या महान को समाधि उत्पन्न करता हैं । उन्हें समाधि प्राप्त कराने वाला श्रमणोपासक उसी समाधि को स्वयं भी प्राप्त करता है। १०. समणोवासए णं भंते ! तहारूवं समणं वा महाणं वा जाव पडिलाभेम्रणे किं चयति ? गोयमा ! जीवियं चयति, दुच्चयं चयति, दुक्करं करेति, दुल्लभं लभति, बोहिं बुज्झति पच्छा सिज्झति जाव अंतं करेति । [१० प्र.] भगवन् ! तथारूप श्रमण या माहन को यावत् प्रतिलाभित करता हुआ श्रमणोपासक क्या त्याग (या संचय) करता है ? [१० उ.] गौतम ! वह श्रमणोपासक जीवित ( जीवननिर्वाह के कारणभूत जीवितवत् अन्नपानादि द्रव्य) का त्याग करता-(देता) है, दुस्त्यज वस्तु का त्याग करता है, दुष्कर कार्य करता है दुर्लभ वस्तु का लाभ लेता है, बोधि (सम्यग्दर्शन) का बोध प्राप्त (अनुभव) करता है, उसके पश्चात् वह सिद्ध (मुक्त) होता है, यावत् सब दुःखों का अन्त करता है। विवेचन — श्रमण या माहन को आहार द्वारा प्रतिलाभित करने वाले श्रमणोपासक को लाभ प्रस्तुत सूत्रद्वय में श्रमण या माहन को आहार देने वाले श्रमणोपासक को प्राप्त होने वाले लाभ एवं विशिष्ट त्याग-संचय लाभ का निरूपण किया गया है। 1 चयति क्रिया के विशेष अर्थ - मूलपाठ में आए हुए 'चयति' क्रिया पद के फलितार्थ के रूप में शास्त्रकार ने श्रमणोपासक को होने वाले ८ लाभों का निरूपण किया है— १. अन्नपानी देना- जीवनदान देना है, अत: वह जीवन का दान (त्याग) करता है। २. . जीवित की तरह दुस्त्याज्य अन्नादि द्रव्य का दुष्कर त्याग करता है। ३. त्याग का अर्थ अपने से दूर करना - विरहित करना भी है। अतः जीवित की तरह जीवित को अर्थात् कर्मों की दीर्घ स्थिति को दूर करता — ह्रस्व करता है ।
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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