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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
इतना विशेष है कि वहाँ देव भी (ये सब ) करते हैं, असुर भी करते हैं, किन्तु नाग (कुमार) नहीं करते।
१३. चउत्थीए वि एवं, नवरं देवो एक्को पकरेति, नो असुरो, नौ भागौ पकरेति ।
[१३] चौथी पृथ्वी में भी इसी प्रकार सब बातें कहनी चाहिए। इतना विशेष है कि वहाँ देव अकेले ( यह सब ) करते हैं, किन्तु असुर और नाग नहीं करते ।
१४. एवं हेट्ठिल्लासु सव्वासु देवो एक्को पकरेति ।
[१४] इसी प्रकार नीचे सब (पांचवी, छठी और सातवीं) पृथ्वियों में केवल देव ही (यह सब कार्य ) करते हैं, (असुरकुमार और नागकुमार नहीं करते।)
१५. अत्थि णं भंते ! सोहम्मीसाणाणं कप्पार्ण अहे गेहा इ वा २ ?
नो इट्ठे सम
[१५ प्र.] भगवन् ! क्या सौधर्म और ईशान कल्पों (देवलोकों) के नीचे गृह अथवा गृहापण हैं ?
[१५ उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
१६. अत्थि णं भंते ! ० उराला बलाहया ?
हंता, अत्थि ।
[१६ प्र.] भगवन् ! क्या सौधर्म और ईशान देवलोक के नीचे महामेघ (उदार बलाहक) हैं ?
[१६ उ.] हाँ, गौतम ! (वहाँ महामेघ) हैं।
१७. देवो पकरेति, असुरो वि पकरेई, नो नागो पकरे ।
[१७] (सौधर्म और ईशान देवलोक के नीचे पूर्वोक्त सब कार्य (बादलों का छाना, मेघ उमड़ना, वर्षा बरसाना आदि) देव करते हैं, असुर भी करते हैं किन्तु नागकुमार नहीं करते ।
१८. एवं थणि सद्दे वि ।
[१८] इसी प्रकार वहाँ स्तनितशब्द के लिए भी कहना चाहिए।
१९. अत्थि णं भंते ! ० बादरे पुढविकाए, बादरे अगणिकाए ?
नो इट्ठे समट्टे, नन्नत्थ विग्गहगतिसमावन्नएणं ।
[१९ प्र.] भगवन् ! क्या वहाँ (सौधर्म और ईशान देवलोक के नीचे) बादर पृथ्वीकाय और बादर अग्निकाय है ?
[ १९ उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। यह निषेध विग्रहगतिसमापन्न जीवों के सिवाय दूसरे जीवों के लिए जानना चाहिए ।