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________________ ८४ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र इतना विशेष है कि वहाँ देव भी (ये सब ) करते हैं, असुर भी करते हैं, किन्तु नाग (कुमार) नहीं करते। १३. चउत्थीए वि एवं, नवरं देवो एक्को पकरेति, नो असुरो, नौ भागौ पकरेति । [१३] चौथी पृथ्वी में भी इसी प्रकार सब बातें कहनी चाहिए। इतना विशेष है कि वहाँ देव अकेले ( यह सब ) करते हैं, किन्तु असुर और नाग नहीं करते । १४. एवं हेट्ठिल्लासु सव्वासु देवो एक्को पकरेति । [१४] इसी प्रकार नीचे सब (पांचवी, छठी और सातवीं) पृथ्वियों में केवल देव ही (यह सब कार्य ) करते हैं, (असुरकुमार और नागकुमार नहीं करते।) १५. अत्थि णं भंते ! सोहम्मीसाणाणं कप्पार्ण अहे गेहा इ वा २ ? नो इट्ठे सम [१५ प्र.] भगवन् ! क्या सौधर्म और ईशान कल्पों (देवलोकों) के नीचे गृह अथवा गृहापण हैं ? [१५ उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। १६. अत्थि णं भंते ! ० उराला बलाहया ? हंता, अत्थि । [१६ प्र.] भगवन् ! क्या सौधर्म और ईशान देवलोक के नीचे महामेघ (उदार बलाहक) हैं ? [१६ उ.] हाँ, गौतम ! (वहाँ महामेघ) हैं। १७. देवो पकरेति, असुरो वि पकरेई, नो नागो पकरे । [१७] (सौधर्म और ईशान देवलोक के नीचे पूर्वोक्त सब कार्य (बादलों का छाना, मेघ उमड़ना, वर्षा बरसाना आदि) देव करते हैं, असुर भी करते हैं किन्तु नागकुमार नहीं करते । १८. एवं थणि सद्दे वि । [१८] इसी प्रकार वहाँ स्तनितशब्द के लिए भी कहना चाहिए। १९. अत्थि णं भंते ! ० बादरे पुढविकाए, बादरे अगणिकाए ? नो इट्ठे समट्टे, नन्नत्थ विग्गहगतिसमावन्नएणं । [१९ प्र.] भगवन् ! क्या वहाँ (सौधर्म और ईशान देवलोक के नीचे) बादर पृथ्वीकाय और बादर अग्निकाय है ? [ १९ उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। यह निषेध विग्रहगतिसमापन्न जीवों के सिवाय दूसरे जीवों के लिए जानना चाहिए ।
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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