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________________ छठा शतक : उद्देशक-८ २०. अत्थि णं भंते ! चंदिम०? णो इणठे समठे। [२० प्र.] भगवन् ! क्या वहाँ चन्द्र, सूर्य ग्रह, नक्षत्र और तारारूप हैं ? [२० उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। २१. अस्थि णं भंते ! गामाइ वा०? णो इणढे समठे। [२१ प्र.] भगवन् ! क्या वहाँ ग्राम यावत् सन्निवेश हैं ? [२१ उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। २२. अत्थि णं भंते ! चंदाभा ति वा २ ? गोयमा ! णो इणठे समठे। ६२२ प्र.] भगवन् ! क्या यहाँ चन्द्रभा, सूर्याभा आदि हैं ? । [२२ उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। २३. एवं सणंकुमार-माहिंदेसु, नवरं देवो एगो पकरेति। [२३] इसी प्रकार सनत्कुमार और माहेन्द्र देवलोकों में भी कहना चाहिए। विशेष यह है कि वहाँ (यह सब) केवल देव ही करते हैं। २४. एवं बंभलोए वि। [२४] इसी प्रकार ब्रह्मलोक (पंचम देवलोक) में भी कहना चाहिए। २५. एवं बंभलोगस्स उवरि सव्वाहिं देवो पकेरति। [२५] इसी तरह ब्रह्मलोक से ऊपर (पंच अनुत्तरविमान देवलोक तक) सर्वस्थलों में पूर्वोक्त प्रकार से कहना चाहिए। इन सब स्थलों में केवल देव ही (पूर्वोक्त कार्य) करते हैं। २६. पुच्छियव्वे य बादरे आउकाए, बादरे तेउकाए, बायरे वणस्सतिकाए। अन्नं तं चेव। गाथा - तमुक्काए कप्पपणए अगणी पुढवी य, अगणि पुढवीसु। आऊ-तेउ-वणस्सति कप्पुवरिम-कहराईसु ॥१॥ ___[२६ प्र.] इन सब स्थलों में बादर अप्काय, बादर अग्निकाय और बादर वनस्पतिकाय के विषय में प्रश्न (पृच्छा) करना चाहिए। उनका उत्तर भी पूर्ववत् कहना चाहिए। अन्य सब बातें पूर्ववत् कहनी चाहिए।
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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