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________________ छठा शतक : उद्देशक-८ ५. तिण्णि वि पकरिति-देवों वि पकरेति, असुरो वि प०, नागो वि प० । [५] यह सब कार्य (महामेघों की संस्वेदित एवं सम्मूर्च्छित करने तथा वर्षा बरसाने का कार्य ये तीनों करते हैं—देव भी करते हैं, असुर भी करते हैं और नाग भी करते हैं।) ६. अत्थि णं भंते ! इमीसे रयण० बादरे थणियसद्दे ? हंता, अत्थि। [६ प्र.] भगवन् ! क्या इस रत्नप्रभापृथ्वी में बादर (स्थूल) स्तनितशब्द (मेघगर्जना की आवाज) है ? ७. तिण्णि वि पकरेंति। [६-७ उ.] हाँ, गौतम ! बादर स्तनितशब्द है, जिसे (उपर्युक्त) तीनों ही करते हैं। ८. अत्थि णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए अहे बादरे अगणिकाए ? गोयमा ! नो इणढे समढे, नऽन्नत्थ विग्गहगतिसमावन्नएणं। ..[८ प्र.] भगवन् ! क्या इस रत्नप्रभापृथ्वी के नीचे बादर अग्निकाय है ? __ [८ उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। यह निषेध विग्रहगतिसमापन्नक जीवों के सिवाय (दूसरे जीवों के लिए समझना चाहिए।) ९. अस्थि णं भंते ! इमीसे रयण अहे चंदिम जाव तारारूवा ? नो इणढे समढे। [९ प्र.] भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नीचे क्या चन्द्रमा, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारारूप हैं ? [९ उ.] (गौतम ! ) यह अर्थ समर्थ नहीं है। १०. अत्थि णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए चंदाभा ति वा २? णो इणढे समढे। [१० प्र.] भगवन् ! क्या इस रत्नप्रभापृथ्वी में चन्द्राभा (चन्द्रमा का प्रकाश), सूर्याभा (सूर्य का प्रकाश) आदि हैं ? [१० उ.] (गौतम ! ) यह अर्थ समर्थ नहीं है। ११. एवं दोच्चाए वि पुढवीए भाणियव्वं। [११] इसी प्रकार (पूर्वोक्त सभी बातें) दूसरी पृथ्वी (शर्कराप्रभा) के लिए भी कहना चाहिए। १२. एवं तच्चाए वि भाणियव्वं, नवरं देवो विपकरेति, असुरो विपकरेति, णो णागो पकरेति। [१२ प्र.] इसी प्रकार (पूर्वोक्त सब बातें) तीसरी पृथ्वी (बालुकाप्रभा) के लिए भी कहना चाहिए।
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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