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________________ प्रथम शतक : उद्देशक - २] जीवों का संसार-संस्थानकाल एवं अल्पबहुत्व [ ५७ १४. जीवस्स णं भंते! तीतद्धाए आदिट्ठस्स कइविहे संसारसंचिट्ठणकाले पण्णत्ते ? गोयमा! चउव्विहे संसारसंचिट्ठणकाले पण्णत्ते । तं जहा - णेरइयसंसारसंचिट्ठणकाले, तिरिक्खजोणियसंसारसंचिट्ठणकाले, मणुस्ससंसारसंचिट्ठणकाले, देवसंसारसंचिट्ठणकाले य पण्णत्ते । [१४. प्र.] भगवन्! अतीतकाल में आदिष्ट - नारक आदि विशेषण - विशिष्ट जीव का संसारसंस्थानकाल कितने प्रकार का कहा गया है ? [१४. उ.] गौतम ! संसार-संस्थान-काल चार प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार हैनैरयिकसंसारसंस्थानकाल, तिर्यञ्चसंसारसंस्थानकाल, मनुष्यसंसारसंस्थानकाल और देवसंसारसंस्थानकाल । - १५. [ १ ] नेरइयसंसारसंचिट्ठणकाले णं भंते! कतिविहे पण्णत्ते ? गोमा ! तिविहे पण्णत्ते । तं जहा-सुन्नकाले, असुन्नकाले, मिस्सकाले । [१५-१ प्र.] भगवन्! नैरयिकसंसारसंस्थानकाल कितने प्रकार का कहा गया है ? [१५-१ उ.] गौतम! तीन प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार - शून्यकाल, अशून्यकाल और मिश्रकाल । [ २ ]तिरिक्खजोणियसंसारसंचिट्ठणकाले पुच्छा । गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते । तं जहा - असुन्नकाले य मिस्सकाले य । [१५-२ प्र.] भगवन् ! तिर्यञ्चसंसारसंस्थानकाल कितने प्रकार का कहा गया है ? [१५- २.उ.] गौतम ! दो प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार - अशून्यकाल और मिश्रकाल । [३] मणुस्साण य, देवाण य जहा नेरइयाणं । [१५-३] मनुष्यों और देवों के संसारसंस्थानकाल का कथन नारकों के समान समझना चाहिए। १६. [ १ ] एयस्स णं भंते! नेरइयसंसारसंचिट्ठणकालस्स सुन्नकालस्स असुन्नकालस्स मीसकालस्स य कयरे कयरेहिंतो अप्पे वा, बहुए वा, तुल्ले वा, विसेसाहिए वा ? गोयमा! सव्वत्थोवे असुन्नकाले, मिस्सकाले अणंतगुणे सुन्नकाले अनंतगुणे । [१६-१ प्र.] भगवन्! नारकों के संसारसंस्थानकाल के जो तीन भेद हैं- शून्यकाल, अशून्यकाल और मिश्रकाल, इनमें से कौन किससे कम, बहुत, तुल्य, विशेषाधिक है ? [१६-१ उ.] गौतम! सबसे कम अशून्यकाल है, उससे मिश्रकाल अनन्तगुणा है और उसकी अपेक्षा भी शून्यकाल अनन्तगुणा है। [२] तिरिक्खजोणियाणं सव्वत्थोवे असुन्नकाले मिस्सकाले अनंतगुणे ।
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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